Nepotism in Bihar Politics : अपवाद बने नीतीश-कुशवाहा, बाकी सभी का परिवार नेता फैक्ट्री

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News India Live, Digital Desk: Nepotism in Bihar Politics : बिहार की राजनीति में परिवारवाद सिर्फ लालू यादव, चिराग पासवान या जीतन राम मांझी तक ही सीमित नहीं है। राज्य में कई ऐसे नेता हैं जिन्होंने पहले खुद को स्थापित किया और फिर अपने परिवार, बीवी, बच्चों और रिश्तेदारों को भी सांसद या विधायक बनाया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं को छोड़कर, पहली पंक्ति में शायद ही कोई ऐसा नेता बचा है जो राजनीति में परिवार के विस्तार में न जुटा हो। ललन सिंह, गिरिराज सिंह, मुकेश सहनी या नित्यानंद राय जैसे कुछ ही नेता हैं जिन्होंने पूरी तरह से अपने दम पर राजनीति में जगह बनाई।

यह एक वैध तर्क है कि अगर जज के बच्चे जज, अफसर के बच्चे अफसर, डॉक्टर के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर के बच्चे इंजीनियर और कलाकार के बच्चे कलाकार बन सकते हैं, तो नेताओं के बच्चे नेतागिरी क्यों न करें। बच्चों के लिए माता-पिता के पेशे को अपनाना अक्सर कम मुश्किल होता है और सफलता की संभावना भी अधिक होती है, क्योंकि वे उस माहौल और परिवेश में बड़े हुए होते हैं।

आज बिहार में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और सम्राट चौधरी जैसे नेता हैं जो नीतीश कुमार के बाद अगले बड़े नेता बनने की होड़ में हैं। ये सभी दूसरी या तीसरी पीढ़ी के नेता हैं, unlike नीतीश कुमार या लालू यादव जो पहली पीढ़ी के बड़े राजनेता थे और जिन्हें अपने पिता के नाम से नहीं जाना जाता था।

पूर्व रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पहले भी 1250 ऐसे परिवार गिनाए थे जिनके सदस्य सांसद या विधायक बने। ऐसे नेताओं की सूची लंबी है जिन्होंने राजनीति में अपनी जगह बनाने के बाद अपने परिवार के सदस्यों को भी बढ़ावा दिया। इस सूची में ऐसे नाम शामिल नहीं हैं जो पिता के निधन के बाद उप-चुनाव के माध्यम से राजनीति में आए, जैसे विजय कुमार चौधरी और नितिन नवीन। साथ ही, उन विधायकों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया है जो अपने पिता की विरासत से आए हैं लेकिन अभी तक मजबूत जगह नहीं बना पाए हैं, जैसे भारत भूषण मंडल, ललन यादव और राणा रणधीर सिंह। जदयू मंत्री शीला मंडल जैसे नाम भी नहीं हैं, जिनके चचेरे ससुर धनिक लाल मंडल मंत्री और गवर्नर रहे और चचेरे जेठ भारत भूषण मंडल राजद विधायक हैं।

ललित नारायण मिश्र के परिवार से जगन्नाथ मिश्र, विजय मिश्र, नीतीश मिश्र और ऋषि मिश्र का बिहार की राजनीति में बड़ा दबदबा रहा। ललित नारायण मिश्र की 1975 में हत्या के बाद उनके भाई जगन्नाथ मिश्र तीन बार मुख्यमंत्री बने। उनके बेटे विजय मिश्र भी सांसद और विधायक रहे। नरेंद्र सिंह का परिवार भी राजनीति में सक्रिय है, जहां उनके पिता कृष्ण सिंह स्वतंत्रता सेनानी और विधायक रहे और उसके बाद नरेंद्र सिंह ने भी कई बार विधायक और मंत्री के रूप में कार्य किया।

तस्लीमुद्दीन के परिवार से सरफराज आलम भी राजनीति में आए। तस्लीमुद्दीन के किशनगंज से लोकसभा जीतने के बाद उनके बेटे सरफराज आलम ने पारंपरिक जोकीहाट सीट से चुनाव लड़ा और जीते। सरफराज ने कई चुनाव जीते और अलग-अलग दलों से जुड़े रहे। जगदानंद सिंह का परिवार भी राजनीति में सक्रिय है। उनके बेटे सुधाकर सिंह विधायक और मंत्री बने, लेकिन जगदानंद के तीसरे बेटे अजीत सिंह को राजद के उपचुनाव में सफलता नहीं मिली। यह दर्शाता है कि हर बार विरासत से राजनीति में प्रवेश आसान नहीं होता।

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