Naval Officer : 27 महीनों का इंतज़ार खत्म नौसेना अधिकारी शुभांशु घर लौटे पत्नी कामना कर रही साधारण पलों का बेसब्री से इंतजार
News India Live, Digital Desk: तकरीबन 27 महीनों तक बंधक रहने के बाद नौसेना अधिकारी शुभांशु यादव की घर वापसी से उनके परिवार में खुशियों की लहर दौड़ गई है। उन्हें यमन में हूथी विद्रोहियों द्वारा अगवा किया गया था और इतने लंबे समय के बाद सुरक्षित रिहा किया गया है, जिसके पीछे भारत सरकार की लगातार कूटनीतिक कोशिशों का अहम योगदान रहा।
दरअसल, 26 मार्च 2022 को संयुक्त अरब अमीरात के झंडे वाले एक व्यापारिक जहाज 'रवाबी' के चालक दल के अन्य सदस्यों के साथ उन्हें यमन के हूथी विद्रोहियों ने अगवा कर लिया था। यह एक बेहद कठिन और तनावपूर्ण दौर था, जिसके बाद परिवार को लगभग सवा दो साल तक अपने प्रियजन की सलामती के लिए इंतजार करना पड़ा।
शुभ्रांशु की पत्नी कामना यादव, जिन्होंने अपने पति की सुरक्षित वापसी के लिए इस लंबे अरसे में प्रार्थनाएं की और हिम्मत रखी, अब बेहद खुश हैं। कामना ने टाइम्स नाउ हिंदी से बात करते हुए बताया कि उन्हें अब सिर्फ सुकून के कुछ पल चाहिए, जहाँ वे अपने पति के साथ मिलकर एक साधारण और खुशहाल जिंदगी दोबारा शुरू कर सकें। उनकी आँखों में उम्मीद थी जब उन्होंने कहा, 'उसे आलू के पराठे बनाकर खिलाऊंगी, अपने पालतू कुत्ते 'लियो' के साथ सैर पर ले जाऊंगी... बस अब एक साथ शांति से घर में समय बिताना चाहती हूं।' कामना ने यह भी बताया कि शादी के मुश्किल से 8 महीने बाद ही शुभ्रांशु का अपहरण हो गया था, जिसके बाद उनका जीवन ठहर सा गया था।
करीब 27 महीने बाद टीवी पर अपने पति का चेहरा देखकर कामना की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। इस पूरे कठिन दौर में, दोनों परिवारों ने एक-दूसरे का संबल बनकर सामना किया।
कामना ने इस पूरी प्रक्रिया में सहयोग और प्रयासों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का विशेष आभार व्यक्त किया। उनकी सुरक्षित रिहाई में भारत सरकार की सक्रिय भागीदारी और वैश्विक मंचों पर लगातार किए गए प्रयास बेहद महत्वपूर्ण साबित हुए।
जानकारी के मुताबिक, शुभ्रांशु 16 जुलाई को दिल्ली पहुंचेंगे, जहां वह नौसेना प्रमुख से मुलाकात करेंगे। इसके बाद वह अपने उत्तर प्रदेश में गृहनगर बदायूं के लिए रवाना होंगे, जहां उनके परिवार वाले और जानने वाले उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उनकी वापसी भारतीय कूटनीति की सफलता और धैर्य की जीत मानी जा रही है, जो कई परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है।
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