Mythology : नारद मुनि का वो श्राप, जिसके कारण भगवान विष्णु को मनुष्य रूप में सहना पड़ा पत्नी वियोग

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Newsindia live,Digital Desk:  Mythology : हिन्दू पौराणिक कथाओं में हर घटना के पीछे कोई न कोई गहरा आध्यात्मिक और पौराणिक रहस्य छिपा होता है। भगवान श्री राम और माता सीता का वियोग रामायण की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस वियोग के पीछे देवर्षि नारद मुनि का एक श्राप भी एक बड़ा कारण माना जाता है? यह कथा नारद मुनि के अहंकार और भगवान विष्णु की माया से जुड़ी हुई है।

नारद मुनि को हुआ अहंकार

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नारद मुनि को इस बात का घमंड हो गया कि उन्होंने कामदेव पर विजय प्राप्त कर ली है और अब कोई भी सांसारिक वासना उन्हें प्रभावित नहीं कर सकती। अपने इस अहंकार का बखान करने वह सबसे पहले भगवान शंकर के पास गए। शिवजी ने उन्हें समझाया कि यह बात भगवान विष्णु को न बताएं, क्योंकि इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। लेकिन अहंकार में डूबे नारद मुनि ने उनकी बात नहीं मानी और सीधे भगवान विष्णु के पास पहुँचकर अपनी प्रशंसा करने लगे।

भगवान विष्णु की माया और स्वयंवर

भगवान विष्णु समझ गए कि नारद को अपनी भक्ति और तप पर अभिमान हो गया है। उनका अहंकार तोड़ने के लिए उन्होंने एक माया रची। विष्णु जी ने एक सुंदर नगर का निर्माण किया, जहाँ की राजकुमारी विश्वमोहिनी के स्वयंवर का आयोजन हो रहा था। राजकुमारी के रूप पर मोहित होकर नारद मुनि ने भी उससे विवाह करने की इच्छा की। वह जानते थे कि राजकुमारी उन्हें ऐसे नहीं चुनेगी, इसलिए वह भगवान विष्णु के पास गए और उनसे 'हरि जैसा मुख' माँगा। 'हरि' का एक अर्थ विष्णु होता है और एक अर्थ वानर (बंदर) भी होता है। भगवान विष्णु ने उन्हें वानर का मुख दे दिया।

नारद मुनि का श्राप

जब नारद मुनि वानर का मुख लेकर स्वयंवर में पहुँचे, तो उन्हें देखकर सब हँसने लगे। राजकुमारी ने भी उनकी उपेक्षा की। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा के रूप में वहाँ आए और राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुन लिया। जब नारद मुनि ने अपना चेहरा पानी में देखा, तो वह क्रोध से भर गए। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया, "जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल होकर भटक रहा हूँ, उसी तरह आपको भी मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ेगा और आपको भी पत्नी का वियोग सहना पड़ेगा। और आज आपने मेरा मुँह बंदर जैसा बनाया है, इसलिए उस अवतार में बंदर ही आपकी सहायता करेंगे।"

माना जाता है कि नारद मुनि के इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में राजा दशरथ के यहाँ श्री राम के रूप में जन्म लिया, उन्हें माता सीता का वियोग सहना पड़ा और रावण से युद्ध में वानर सेना ने ही उनकी सहायता की। यह कथा सिखाती है कि भक्ति के मार्ग में अहंकार सबसे बड़ी बाधा है।

 

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