Mythological story: महादेव ने क्यों लिया था हनुमान का अवतार सावन में जानिए ये अद्भुत रहस्य

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News India Live, Digital Desk: Mythological story: हिन्दू धर्मग्रंथों में भगवान शिव और हनुमान जी का संबंध अत्यंत पवित्र और रहस्यमय माना जाता है। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि भगवान हनुमान वास्तव में भगवान शिव के ही ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। अक्सर यह सवाल मन में आता है कि त्रिलोकी के स्वामी, महादेव को हनुमान का अवतार लेने की क्या आवश्यकता पड़ी? इसके पीछे एक गहरा और प्रेरक पौराणिक प्रसंग छिपा हुआ है।

कथा के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के यहाँ पुत्र के रूप में जन्म लेने का निर्णय लिया था ताकि वे दुष्ट रावण का संहार कर सकें और धर्म की पुनर्स्थापना हो सके। जब भगवान विष्णु, श्री राम के रूप में अवतरित हुए, तो उनकी सेवा और सहायता करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भी विभिन्न रूपों में धरती पर जन्म लिया। स्वयं महादेव भी श्री राम के परम भक्त थे और उनकी निष्काम सेवा करना चाहते थे।

एक दिन, राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक विशेष यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के समाप्त होने पर अग्नि देव ने प्रसन्न होकर राजा को खीर का एक कटोरा प्रदान किया और बताया कि इसे उनकी रानियों को खिलाने से उन्हें दिव्य पुत्र प्राप्त होंगे। दशरथ ने वह खीर अपनी रानियों, कौशल्या और कैकेयी, में बांट दी। कौशल्या ने अपने हिस्से की थोड़ी खीर कौशल्या ने माता सुमित्रा को भी दी, और इसी प्रकार वे तीन रानियाँ राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म देने वाली थीं।

हालांकि, इसी समय, पवन देव अपने मार्ग से गुज़र रहे थे। माता अंजना, जो भगवान शिव की परम भक्त थीं, संतान प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। पवन देव ने राजा दशरथ के यज्ञ से खीर का एक छोटा सा अंश ग्रहण किया और उसे लेकर सीधे अंजना माता की ओर बढ़ गए। वायु ने उस खीर को अंजना के हाथों में गिरा दिया। अंजना ने इसे भगवान शिव का ही प्रसाद मानकर ग्रहण कर लिया। कहा जाता है कि अंजना ने पवन देव के अंश और उस खीर के दिव्य प्रभाव से एक शक्तिशाली पुत्र को जन्म दिया, जिन्हें हनुमान जी के नाम से जाना गया।

यह घटना दर्शाती है कि भगवान शिव, श्री राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति और सेवाभाव के कारण ही इस अवतार में आए। हनुमान जी के रूप में उन्होंने भगवान राम के प्रत्येक कार्य में सहायक बनकर, उन्हें संकटों से मुक्ति दिलाकर और उनका नाम जन-जन तक पहुँचाकर, भक्ति का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत किया। इसी कारण हनुमान जी को पवनपुत्र, अंजनापुत्र और शंकरसुवन (शिव के पुत्र) जैसे नामों से जाना जाता है। उनका जन्म महादेव की रामभक्ति का ही प्रत्यक्ष प्रमाण है।

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