Mumbai local Train Blasts: न्याय के लंबे सफर के बाद 9 अभियुक्तों को मिली ज़मानत दो अब भी जेल में
News India Live, Digital Desk: Mumbai local Train Blasts: वर्ष 2006 में मुंबई की उपनगरीय ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाके, जिन्होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, उससे जुड़े एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने 9 अभियुक्तों को ज़मानत दे दी है। यह फैसला इन अभियुक्तों द्वारा न्यायिक हिरासत में बिताए गए लंबे समय और उनकी अपील पर सुनवाई में हुए असाधारण विलंब के मद्देनजर आया है। लगभग 18 साल जेल में बिताने के बाद, मंगलवार को यह नौ लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सलाखों के पीछे से बाहर आ सके।
इस भीषण आतंकी हमले में 189 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। मामले में शुरू में 13 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। जांच के बाद, ट्रायल कोर्ट ने इनमें से एक व्यक्ति को बरी कर दिया था, जबकि अन्य 12 को दोषी करार दिया। उच्च न्यायालय ने बाद में पांच अभियुक्तों की मौत की सजा को बरकरार रखा था, और सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां इनकी अपील लंबित थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अपील दायर किए जाने के बावजूद, इस पर अंतिम सुनवाई शुरू भी नहीं हुई थी, जिसके कारण अभियुक्तों को अनिश्चित काल तक हिरासत में रहना पड़ा। न्याय में इस तरह की देरी, खासकर जबकि कई लोग लगभग दो दशक से जेल में हों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए यह ज़मानत दी है कि किसी भी व्यक्ति को अत्यधिक समय तक केवल इसलिए जेल में नहीं रखा जा सकता क्योंकि उसकी अपील पर फैसला आने में देरी हो रही है।
ज़मानत पर रिहा हुए 9 अभियुक्तों के अलावा, इस मामले के दो अन्य अभियुक्त अभी भी जेल में बंद हैं। इनमें से एक व्यक्ति अन्य आपराधिक मामलों के चलते हिरासत में है, जबकि दूसरे की मौत की सजा का अंतिम फैसला बरकरार होने के कारण उसे ज़मानत नहीं मिल पाई है। इस फैसले से उन हजारों अंडरट्रायल कैदियों की स्थिति पर भी रोशनी पड़ी है जो लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं के कारण बिना दोषी सिद्ध हुए ही सालों तक जेलों में बंद रहते हैं। यह न्याय व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है जो त्वरित और प्रभावी न्याय की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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