Ministry of Education : धर्मेंद्र प्रधान ने किया ये खुलासा ,अब भाषा को लेकर नहीं होगा कोई झगड़ा, देश को मिलेगी ये बड़ी शांति.
News India Live, Digital Desk: Ministry of Education : भारत में भाषाओं को लेकर हमेशा से एक संवेदनशील बहस चलती रही है, खासकर जब बात हिंदी को गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर थोपने की आती है. ऐसे में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) ने एक बेहद अहम और राहत देने वाला बयान दिया है. उन्होंने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा है कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य पर कोई भी भाषा नहीं थोपेगी. यह बयान उन तमाम आशंकाओं और चिंताओं को दूर करता है, जो अक्सर भाषा नीति को लेकर अलग-अलग राज्यों, खासकर दक्षिण भारतीय राज्यों में देखने को मिलती हैं.
तो क्या है इस बयान का पूरा मतलब और क्यों यह भारतीय संघवाद के लिए इतना महत्वपूर्ण है? आइए जानते हैं.
धर्मेंद्र प्रधान का स्पष्ट बयान:
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बिल्कुल साफ तौर पर कहा है कि, "केंद्र का किसी भी राज्य पर किसी भाषा को थोपने का कोई इरादा नहीं है. हमारा मानना है कि हर भारतीय भाषा का अपना महत्त्व है और वह समृद्ध है. हमारा मक़सद किसी भी एक भाषा को दूसरे पर तरजीह देना नहीं, बल्कि सभी भाषाओं का सम्मान करना और उन्हें बढ़ावा देना है." यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भाषा की नीति अक्सर राजनीति और सांस्कृतिक पहचान से जुड़कर संवेदनशील बन जाती है.
क्यों महत्त्वपूर्ण है यह बयान?
भारत विविध भाषाओं का देश है, जहाँ हर राज्य की अपनी भाषा और संस्कृति है. पहले भी हिंदी को 'राजभाषा' के रूप में बढ़ावा देने के प्रयासों को कुछ राज्यों, ख़ासकर तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों ने 'भाषा थोपने' की कोशिश के रूप में देखा था. इस वजह से समय-समय पर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक बहसें छिड़ती रही हैं.
- राज्यों की चिंताएँ दूर होंगी: धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान राज्यों की इस चिंता को दूर करता है कि केंद्र सरकार उनकी स्थानीय भाषाओं पर हिंदी को थोप सकती है. यह एक बार फिर भाषाई विविधता के सम्मान को रेखांकित करता है.
- राष्ट्रीय एकता: भारत की ताकत उसकी विविधता में निहित है. भाषाओं का सम्मान करके हम राष्ट्रीय एकता को और मज़बूत करते हैं. जब किसी को अपनी भाषाई पहचान पर खतरा महसूस नहीं होता, तो देश की एकता और भाईचारा भी बढ़ता है.
- शिक्षा नीति में समन्वय: यह बयान राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy - NEP) के उस विजन से भी मेल खाता है, जो मातृभाषा में शिक्षा और क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने पर ज़ोर देती है. इससे छात्रों को अपनी मातृभाषा में बेहतर शिक्षा मिल सकेगी और वे अपनी जड़ों से भी जुड़े रहेंगे.
यह स्पष्ट संदेश भारतीय संघवाद और भाषाई विविधता के प्रति सरकार के सम्मान को दर्शाता है. धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान निश्चित रूप से भारत के विभिन्न राज्यों के बीच भाषाई सौहार्द बनाए रखने में मदद करेगा और भाषा को विवाद की नहीं, बल्कि एकता के साधन के रूप में देखेगा
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