Mahalaxmi Vrat 2025: जानें कब से शुरू है धन और समृद्धि का यह सोलह दिवसीय महापर्व
News India Live, Digital Desk: Mahalaxmi Vrat 2025: महालक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जो धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित है. यह व्रत लगातार सोलह दिनों तक रखा जाता है और मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि, धन और ऐश्वर्य का आगमन होता है.
साल 2025 में महालक्ष्मी व्रत शुक्रवार, 5 सितंबर से शुरू होगा. यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलेगा. व्रत की समाप्ति शुक्रवार, 20 सितंबर 2025 को होगी, यानी यह कुल 16 दिनों तक चलेगा. इस अवधि के दौरान माता लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है, और प्रत्येक दिन एक विशेष संकल्प के साथ देवी का आह्वान किया जाता है.
महालक्ष्मी व्रत का महत्व:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का सीधा संबंध अष्ट लक्ष्मी से है, जो धन, धान्य, धैर्य, यश, विद्या, संतान, विजय और सौभाग्य प्रदान करने वाली आठ शक्तियों का प्रतीक हैं. यह व्रत न केवल भौतिक सुख-सुविधाओं को आकर्षित करता है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है. महालक्ष्मी व्रत करने से आर्थिक संकट दूर होते हैं, परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, और व्यक्ति के जीवन में उन्नति के नए द्वार खुलते हैं.
महालक्ष्मी पूजा विधि और नियम:
कलश स्थापना: व्रत के पहले दिन, यानी 5 सितंबर को सुबह उठकर स्नान करने के बाद, पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करनी चाहिए. इस कलश को गंगाजल और पानी से भरकर उसमें अक्षत, सिक्के, दूर्वा और एक सुपारी डालनी चाहिए. कलश पर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल रखना चाहिए.
मूर्ति स्थापना और श्रृंगार: कलश के पास माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. प्रतिमा को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजाना चाहिए. देवी को लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है.
पूजन सामग्री: पूजा में कमल का फूल, लाल चंदन, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, अगरबत्ती, मिठाई (विशेषकर खीर), फल (जैसे कमल ककड़ी), नारियल और मखाने अवश्य शामिल करें. श्रीयंत्र की पूजा भी विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है.
कथा श्रवण: हर दिन महालक्ष्मी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना चाहिए. यह व्रत कथा देवी महालक्ष्मी की महिमा और इस व्रत से जुड़े चमत्कारों का वर्णन करती है.
मंत्र जाप: 'ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः' मंत्र का जाप करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है.
सोलह गांठ वाला धागा: व्रत के सोलह दिनों तक सोलह गांठों वाला लाल रंग का एक विशेष धागा भी पूजा स्थल पर रखना चाहिए. इसे पूजा के अंतिम दिन देवी को अर्पित करने के बाद बाजू में बांधा जा सकता है.
ब्राह्मणों को भोजन: व्रत के समापन पर, ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दक्षिणा देना अत्यंत शुभ माना जाता है.
यह व्रत भक्त को धन और आध्यात्मिक समृद्धि की ओर ले जाता है, साथ ही यह देवी महालक्ष्मी के प्रति सच्ची भक्ति और श्रद्धा को दर्शाता है.
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