Mahabharata War : महाभारत में कृष्ण की माया से कैसे पूर्ण हुई अर्जुन की अग्नि प्रतिज्ञा

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Newsindia live,Digital Desk: महाभारत के चौदहवें दिन कौरवों ने छल से अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वध कर दिया युद्ध नियमों का उल्लंघन कर कई महारथियों ने मिलकर निहत्थे अभिमन्यु पर हमला किया जयद्रथ ने इस पूरे प्रकरण में मुख्य भूमिका निभाई उसी ने चक्रव्यूह के अंतिम द्वार को बंद किया जिससे कोई अभिमन्यु को सहायता न भेज सके भगवान कृष्ण और बलदेव के एक श्राप के कारण ही जयद्रथ ऐसा कर पाया अपने पुत्र अभिमन्यु की निर्मम मृत्यु पर अर्जुन अत्यधिक क्रोधित हुए उन्होंने यह भीषण प्रतिज्ञा ली कि यदि वह अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध नहीं कर पाए तो अग्नि कुंड में स्वयं को समर्पित कर देंगे यह सुनकर कौरव प्रसन्न हुए और उन्होंने जयद्रथ को सुरक्षा देने का निर्णय लिया गुरु द्रोणाचार्य ने स्वयं जयद्रथ की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली अगले दिन अर्जुन ने पूरी शक्ति से जयद्रथ पर आक्रमण किया परंतु द्रोणाचार्य और अन्य महारथियों की घेराबंदी तोड़ना मुश्किल था तब भगवान 

श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को थोड़ी देर के लिए ढक लिया ऐसा लगा जैसे सूर्यास्त हो गया हो और यह देख जयद्रथ और कौरव प्रसन्न हुए वे सोचने लगे कि अर्जुन अब अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और आत्महत्या कर लेगा इसी भ्रम का फायदा उठाकर जयद्रथ को अर्जुन के सामने ले आया गया जैसे ही सूर्य पुनः प्रकट हुए श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यह सही समय है और शीघ्र जयद्रथ का वध करो अर्जुन ने तत्काल अपनी गांडीव धनुष से बाण चलाया और जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर दिया इस प्रकार अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और स्वयं को अग्नि कुंड में जाने से बचा लिया यह घटना धर्म की जीत और अधर्म की हार का प्रतीक है

 

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