कर्नाटक में 'जाति जनगणना' पर महाभारत, BJP बोली - कांग्रेस हिंदुओं को तोड़ने की साज़िश कर रही
कर्नाटक में सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार एक ऐसे 'जिन्न' को बोतल से बाहर निकालने की तैयारी कर रही है, जिसने पूरे राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। यह जिन्न है जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट का। सरकार इस रिपोर्ट को जल्द से जल्द विधानसभा में पेश करने पर अड़ी हुई है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इसके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। BJP का आरोप है कि यह सिर्फ़ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि कांग्रेस की "हिंदू समाज को तोड़ने और अपनी वोट बैंक की राजनीति चमकाने" की एक गहरी साज़िश है।
यह 'जाति जनगणना' रिपोर्ट क्या है जो हंगामा मचा रही है?
कहानी 2014-15 से शुरू होती है, जब सिद्धारमैया अपने पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री थे। उन्होंने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को राज्य में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक जनगणना कराने का काम सौंपा, जिसे आमतौर पर 'जाति जनगणना' के नाम से जाना जाता है। आयोग ने 2018 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, लेकिन तब से यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी है।
अब, सिद्धारमैया सत्ता में वापस आ गए हैं और उन्होंने इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने की घोषणा की है।
भाजपा को इस रिपोर्ट पर आपत्ति क्यों है?
भाजपा इस रिपोर्ट का कड़ा विरोध कर रही है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता, बसपा राज बोम्मई ने आरोप लगाया है:
रिपोर्ट ही गलत और अवैज्ञानिक: बोम्मई का कहना है कि आयोग द्वारा किया गया सर्वेक्षण पूरी तरह से अवैज्ञानिक और ज़मीनी हक़ीक़त से बिल्कुल अलग है। उनका दावा है कि इसे बिना किसी ठोस आधार के तैयार किया गया है।
हिंदुओं को बाँटने की चाल: भाजपा का सबसे बड़ा आरोप यह है कि कांग्रेस इस रिपोर्ट के ज़रिए कर्नाटक के दो सबसे प्रभावशाली समुदायों - लिंगायत और वोक्कालिगा - को निशाना बनाकर उन्हें कमज़ोर करना चाहती है और दूसरी जातियों को उनके ख़िलाफ़ भड़काना चाहती है, ताकि वह अपना वोट बैंक मज़बूत कर सके। साफ़ शब्दों में कहें तो भाजपा इसे "फूट डालो और राज करो" की नीति बता रही है।
कांग्रेस का क्या है कहना?
दूसरी ओर, कांग्रेस सरकार का कहना है कि यह रिपोर्ट समाज की असली तस्वीर दिखाएगी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि इससे पता चलेगा कि कौन सा समुदाय कितना पिछड़ा है और किसे सरकारी योजनाओं की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। वह इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम बता रहे हैं।
आगे क्या होगा?
एक बात तो तय है, इस जाति जनगणना रिपोर्ट ने कर्नाटक की राजनीति में आग लगा दी है। कांग्रेस इसे पिछड़े वर्गों के लिए एक 'क्रांति' बता रही है, तो भाजपा इसे हिंदू समाज के लिए एक 'साज़िश' मान रही है। अब देखना यह है कि सदन में रखी जाने वाली यह रिपोर्ट राज्य को विकास के पथ पर ले जाएगी या जातीय संघर्ष की एक नई आग भड़काएगी। कर्नाटक की राजनीति का यह नया 'कुरुक्षेत्र' अभी और कई करवटें लेगा।
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