Love Bombing in Relationships: प्यार की अति या साथी को नियंत्रित करने की मनोवैज्ञानिक रणनीति

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News India Live, Digital Desk: Love Bombing in Relationships:   आजकल की डिजिटल और तेज़ी से बदलती दुनिया में रिश्तों के मायने भी काफी हद तक बदल गए हैं। नई पीढ़ी, विशेषकर जनरेशन Z Gen Z)के युवा अपने संबंधों में लव-बॉम्बिंग  नामक एक अवधारणा को अनजाने में या जानबूझकर अपनाते हुए दिख रहे हैं, जो सुनने में भले ही रोमांटिक लगे, लेकिन अक्सर यह साथी को नियंत्रित करने का एक मनोवैज्ञानिक खेल बन जाता है।

लव-बॉम्बिंग एक ऐसी तकनीक है जहाँ संबंध की शुरुआत में एक व्यक्ति अपने पार्टनर पर अत्यधिक प्यार, असीम तारीफें, बहुत अधिक ध्यान और बड़े-बड़े वादे लुटा देता है। इसमें उपहारों की भरमार हो सकती है, भविष्य के लिए आकर्षक योजनाएं बताई जा सकती हैं और पार्टनर को यह महसूस कराया जा सकता है कि वही उसका 'एकमात्र सच्चा प्यार' या 'सोलमेट' है। शुरुआत में, जिसे लव-बॉम्बिंग किया जा रहा होता है, वह खुद को बहुत भाग्यशाली, खास और सबसे अधिक प्यार किया गया महसूस करता है। उसे लगता है कि उसका जीवनसाथी दुनिया का सबसे परफेक्ट व्यक्ति है, जो उसे इतनी खुशी दे रहा है।

लेकिन इस प्यार के अतिरेक के पीछे एक गहरी और अक्सर अस्वास्थ्यकर मंशा छिपी होती है। 'लव-बॉम्बिंग' करने वाला व्यक्ति आमतौर पर असुरक्षा की भावना, नियंत्रण की तीव्र इच्छा, या अपने अतीत के अनुभवों से जूझ रहा होता है। वह चाहता है कि उसका साथी पूरी तरह से उस पर निर्भर हो जाए और भावनात्मक रूप से बंध जाए। इस शुरुआती आकर्षण का उपयोग वह इसलिए करता है ताकि बाद में साथी को अपनी बात मनवा सके, उसे नियंत्रित कर सके या उसे उसके दोस्तों और परिवार से दूर कर सके।

जब 'लव-बॉम्बिंग' करने वाले को यह अहसास हो जाता है कि उसने अपने पार्टनर को पूरी तरह अपने जाल में फंसा लिया है, तो उसका व्यवहार अचानक बदलने लगता है। प्यार और तारीफें कम हो जाती हैं, छोटी-छोटी बातों पर नियंत्रण करने की कोशिशें बढ़ जाती हैं, और पार्टनर को अपनी कमियों के लिए दोषी ठहराया जाने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनका लक्ष्य पार्टनर का ध्यान और नियंत्रण हासिल करना था, और जब वह प्राप्त हो जाता है, तो अति-स्नेह का नाटक समाप्त हो जाता है। इस स्थिति में फंसे हुए व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है जैसे उसे 'एक उच्च pedestal से धकेल दिया गया' है, और उसे अक्सर भ्रम और आत्म-मूल्य की कमी का अनुभव होता है। वह अब खुद को फंसा हुआ और अकेला महसूस करता है, जो भावनात्मक दुर्व्यवहार का रूप ले लेता है।

Gen Z के बीच इस चलन के बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे सोशल मीडिया का प्रभाव जहां 'परफेक्ट रिलेशनशिप' का दबाव होता है, त्वरित संतुष्टि की संस्कृति (instant gratification), और कभी-कभी भावनात्मक परिपक्वता की कमी भी। पहचान बनाने की दौड़ में वे अपने रिश्ते में तीव्रता तो चाहते हैं, लेकिन अक्सर उस गहराई को समझ नहीं पाते। यह सिर्फ एक पार्टनर का दूसरे पार्टनर पर नियंत्रण का मामला नहीं है, बल्कि एक अनजाने में अपनाया गया व्यवहार है जो भावनात्मक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। इसलिए, रिश्तों में अगर प्यार हद से ज्यादा और बहुत तेजी से बढ़ता हुआ लगे, तो कुछ पल रुककर गहराई से सोचने की ज़रूरत है कि क्या यह सच्चा स्नेह है या नियंत्रण की कोई तकनीक? अपने आत्म-मूल्य और सीमाओं को समझना ऐसे जाल से बचने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

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