Lord Vishnu : 14 गांठों वाला एक धागा, जो बदल सकता है आपकी किस्मत, जानें अनंत चतुर्दशी की पूरी कहानी और पूजा विधि
News India Live, Digital Desk: हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को एक बहुत ही खास और पवित्र दिन मनाया जाता है, जिसे हम अनंत चतुर्दशी के नाम से जानते हैं. इस साल यह त्योहार यह दिन दो वजहों से बहुत महत्वपूर्ण होता है. एक तो यह गणपति बप्पा की विदाई का दिन है, और दूसरा, यह दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप को समर्पित है.
मान्यता है कि इस दिन अगर कोई सच्चे मन से व्रत रखता है और अपनी कलाई पर 'अनंत सूत्र' बांधता है, तो उसके जीवन के सारे कष्ट और बाधाएं दूर हो जाती हैं.
चलिए, आज हम आपको इस व्रत से जुड़ी हर वो बात बताते हैं जो आप जानना चाहते हैं - एकदम सरल भाषा में.
क्या है ये चमत्कारी 'अनंत सूत्र'?
अनंत चतुर्दशी की पूजा का सबसे मुख्य हिस्सा होता है 'अनंत सूत्र'. यह कोई मामूली धागा नहीं होता.
- यह रेशम या सूत का एक धागा होता है, जिसे हल्दी में रंगा जाता है.
- इसमें चौदह (14) गांठें लगाई जाती हैं.
- ये 14 गांठें भगवान विष्णु के 14 लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं.
- पूजा करने के बाद पुरुष इसे अपने दाहिने हाथ की कलाई पर और महिलाएं अपने बाएं हाथ की कलाई पर बांधती हैं.
- ऐसी मान्यता है कि यह धागा एक रक्षा-सूत्र की तरह काम करता है और हर मुसीबत से हमारी रक्षा करता है.
कैसे करें अनंत चतुर्दशी की पूजा? (सरल पूजा विधि)
इस दिन की पूजा आप बहुत ही आसानी से घर पर कर सकते हैं.
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें.
- मंदिर या पूजा घर को साफ करें और एक चौकी पर भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें.
- एक कलश स्थापित करें. उस पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की तस्वीर रखें, जिसमें उनके साथ माता लक्ष्मी भी हों.
- अब 'अनंत सूत्र' को भगवान विष्णु के सामने रखें.
- भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पंचोपचार (यानी हल्दी, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य) से पूजा करें.
- पूजा में खीर या आटे का हलवा और मालपुआ का भोग लगाना बहुत शुभ माना जाता है.
- इसके बाद अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा जरूर पढ़ें या सुनें.
- कथा के बाद भगवान से अपनी मनोकामना कहें और "ॐ अनंताय नम:" मंत्र का जाप करते हुए उस सूत्र को अपनी कलाई पर बांध लें.
व्रत की कहानी: जब एक धागे का अपमान बहुत भारी पड़ा
बहुत समय पहले एक ब्राह्मण थे जिनका नाम सुमंत था. उनकी एक बहुत ही सुशील और धर्मपरायण बेटी थी, जिसका नाम सुशीला था. जब सुशीला बड़ी हुई, तो उसका विवाह कौण्डिन्य ऋषि से कर दिया गया.
शादी के बाद जब कौण्डिन्य ऋषि अपनी पत्नी सुशीला को लेकर घर जा रहे थे, तो रास्ते में रात हो गई. सुशीला ने देखा कि नदी किनारे कुछ महिलाएं पूजा कर रही हैं. पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अनंत भगवान का व्रत कर रही हैं और यह धागा हर संकट से रक्षा करता है. सुशीला ने भी वहीं व्रत का नियम सीखा और अपनी कलाई पर अनंत सूत्र बांध लिया.
उस धागे के प्रभाव से कौण्डिन्य ऋषि के घर में सुख-समृद्धि आ गई. हर तरफ खुशहाली थी. एक दिन कौण्डिन्य ऋषि की नजर सुशीला की कलाई पर बंधे धागे पर पड़ी. उन्हें लगा कि यह कोई साधारण डोरा है. गुस्से में आकर उन्होंने पूछा कि क्या इस धागे ने तुम्हें बांध रखा है? और यह कहकर उन्होंने वो धागा तोड़कर आग में फेंक दिया.
जिस दिन से उस धागे का अपमान हुआ, उसी दिन से उनके बुरे दिन शुरू हो गए. उनकी सारी धन-दौलत खत्म हो गई, घर में दरिद्रता आ गई और वे दुखी रहने लगे. जब सुशीला ने उन्हें याद दिलाया कि यह सब अनंत भगवान का अपमान करने की वजह से हुआ है, तो कौण्डिन्य ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ.
वे पश्चाताप करने के लिए जंगल में चले गए और अनंत भगवान को खोजने लगे. बहुत ढूंढने के बाद भी जब भगवान नहीं मिले तो वे निराश होकर प्राण त्यागने वाले थे. तभी एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें ज्ञान दिया. उन्होंने कहा कि तुम्हारे बुरे कर्मों के कारण ही तुम्हें दुख मिला. अब तुमने पश्चाताप कर लिया है, तो घर जाकर 14 वर्षों तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करो, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. कौण्डिन्य ऋषि ने ठीक वैसा ही किया और उन्हें अपनी सारी सुख-समृद्धि वापस मिल गई.
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें आस्था और विश्वास का कभी अपमान नहीं करना चाहिए.
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