Kurukshetra war : महाभारत का वो योद्धा, जिसे उसकी दानवीरता नहीं, एक शाप ने दी मौत क्या सच में गो हत्या ने लिखी कर्ण की तकदीर
News India Live, Digital Desk: Kurukshetra war : महाभारत का युद्ध केवल एक रक्तपात ही नहीं, बल्कि धर्म, अधर्म, त्याग और कर्म के गहरे सिद्धांतों का युद्ध भी था। इस युद्ध में कई ऐसे पराक्रमी योद्धा थे जिनकी मृत्यु साधारण नहीं थी, बल्कि किसी न किसी शाप या पूर्वनिश्चित कर्मों का फल थी। इन्हीं में से एक थे अंगराज कर्ण दानवीर, तेजस्वी और अपने युग के महानतम धनुर्धरों में से एक। कर्ण का जीवन बलिदान, अस्वीकृति और अंततः एक अत्यंत दुखद अंत की गाथा है। उनकी मृत्यु केवल युद्धक्षेत्र में अर्जुन के बाणों से नहीं हुई थी, बल्कि उसके पीछे कुछ ऐसे गहरे रहस्य और शाप छिपे थे जिन्होंने उनकी नियति को लिख दिया था। इनमें से सबसे प्रमुख है 'गो-हत्या' का शाप, जिसके बारे में शायद ही सब जानते होंगे। आखिर कैसे हुई थी सूर्यपुत्र कर्ण की मृत्यु? और कैसे गो-हत्या का शाप उनके अंत का कारण बना? यह कहानी बताती है कि कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ते।
कर्ण, जिन्हें 'दानवीर कर्ण' के नाम से जाना जाता है, अपनी दानशीलता और अद्वितीय शौर्य के लिए प्रसिद्ध थे। वे कुंती और सूर्य देव के पुत्र थे, जिन्हें जन्म लेते ही त्याग दिया गया था। अपने जीवन में लगातार उपेक्षा झेलने के बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से धनुर्विद्या में अद्भुत महारत हासिल की। द्रोणाचार्य ने जब उन्हें शस्त्र शिक्षा देने से मना कर दिया, तो वे महर्षि परशुराम के पास पहुँचे, जो केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते थे। कर्ण ने खुद को ब्राह्मण बताकर उनसे अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। परशुराम ने उन्हें ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली अस्त्र 'ब्रह्मास्त्र' का ज्ञान भी दिया। परंतु, परशुराम को जब कर्ण की असल पहचान पता चली, तो उन्होंने क्रोधित होकर कर्ण को शाप दिया कि जिस विद्या पर उन्हें सबसे अधिक गर्व है, वह निर्णायक युद्ध में उन्हें धोखा देगी और वह सबसे महत्वपूर्ण समय में उसे भूल जाएंगे। यह शाप भी कर्ण की मृत्यु का एक बड़ा कारण बना, परंतु एक और शाप भी था जो उनकी नियति को गढ़ रहा था।
कुरुक्षेत्र युद्ध से काफी पहले की बात है। एक बार कर्ण अपनी अस्त्र विद्या का अभ्यास कर रहे थे। उस समय वह ध्वनि-भेदी बाण चलाने का अभ्यास कर रहे थे, जिसमें लक्ष्य को देखे बिना केवल उसकी ध्वनि सुनकर बाण छोड़ा जाता है। इसी अभ्यास के दौरान एक दर्दनाक घटना घटी। कर्ण द्वारा छोड़ा गया एक बाण अनजाने में एक गाय के बछड़े (कहीं-कहीं गाय का भी उल्लेख है) को जा लगा, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। यह बछड़ा एक तपस्वी ब्राह्मण का था। अपने प्यारे बछड़े की आकस्मिक मृत्यु से आहत और क्रोधित होकर, उस ब्राह्मण ने कर्ण को भयंकर शाप दे दिया। ब्राह्मण ने शाप देते हुए कहा, "जिस प्रकार तुमने मेरे बेगुनाह बछड़े की असामयिक मृत्यु का कारण बने हो, ठीक उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी उसी क्षण होगी, जब तुम सबसे अधिक लाचार होगे। युद्धभूमि में तुम्हारे रथ का पहिया धरती में धँस जाएगा, ठीक उसी प्रकार जैसे मेरा बछड़ा जमीन पर गिरा, और उस क्षण तुम असहाय होकर मारे जाओगे।"
यह शाप साधारण नहीं था, क्योंकि हिंदू धर्म में गो-हत्या को एक घोर पाप माना गया है। चाहे वह जानबूझकर की गई हो या अनजाने में। ब्राह्मण के इस शाप ने कर्ण की भविष्य की राह पर एक अमिट स्याही डाल दी थी। इस शाप ने परशुराम के शाप के साथ मिलकर कर्ण के विनाश की आधारशिला रख दी।
कर्ण की मृत्यु का अंतिम रहस्य! वो भयंकर क्षण जब गो-हत्या का शाप बन गया 'मौत का फरमान'!
महाभारत युद्ध के सत्रहवें दिन, जब पांडव सेना में भीषण हाहाकार मचा हुआ था, तब कर्ण ने अर्जुन को भयंकर चुनौती दी। कर्ण और अर्जुन के बीच भीषण द्वंद्व चल रहा था, और यह स्पष्ट था कि यह युद्ध दोनों में से किसी एक की ही मौत के साथ समाप्त होगा। कर्ण अपने अदम्य शौर्य का प्रदर्शन कर रहे थे, और अर्जुन के लिए भी उन्हें रोक पाना कठिन हो रहा था। तभी, ब्राह्मण के गो-हत्या के शाप का क्षण आया। ठीक उसी वक्त जब युद्ध अपने चरम पर था, कर्ण के रथ का एक पहिया अचानक कीचड़ में धंस गया और बुरी तरह से अटक गया।
कर्ण ने कई बार कोशिश की, लेकिन रथ का पहिया टस से मस नहीं हुआ। इस भयंकर और निर्णायक घड़ी में, परशुराम के शाप ने भी अपना प्रभाव दिखाया। कर्ण को 'ब्रह्मास्त्र' मंत्र की स्मृति नहीं आ रही थी, जिसकी उन्हें इस क्षण में सबसे अधिक आवश्यकता थी। वह विवश होकर अपने रथ का पहिया निकालने के लिए नीचे उतरे, ठीक उसी क्षण श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इशारा किया। धर्म-अधर्म के इस युद्ध में, भगवान कृष्ण जानते थे कि यदि कर्ण को संभलने का मौका मिल गया, तो अर्जुन का बचना मुश्किल होगा। अपने रथ का पहिया उठाते हुए, असहाय अवस्था में कर्ण पर अर्जुन ने 'अंजलिकास्त्र' से प्रहार कर दिया। यह वार इतना शक्तिशाली था कि सीधे कर्ण का सिर धड़ से अलग कर गया, और महान योद्धा कर्ण वीरगति को प्राप्त हुए।
इस प्रकार, कर्ण की मृत्यु केवल अर्जुन के बाणों से नहीं हुई, बल्कि उन दो शक्तिशाली शापों का परिणाम थी—एक परशुराम का, जिन्होंने कर्ण को छल का दंड दिया, और दूसरा उस ब्राह्मण का, जिसका बछड़ा कर्ण के बाण से मरा था। यह घटनाएं महाभारत में 'कर्म' के सिद्धांत को गहरे तौर पर दर्शाती हैं, जहाँ अच्छे-बुरे कर्मों का फल अवश्य मिलता है, भले ही वह अनजाने में ही क्यों न हुआ हो। कर्ण का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि महान से महान योद्धा भी अपनी नियति और कर्मों के जाल से बच नहीं पाता।
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