Kisan Andolan: पंजाब में किसानों का जमीनी संग्राम तेज़ सरकार की लैंड पूलिंग नीति के खिलाफ किसान हाईकोर्ट पहुंचे

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News India Live, Digital Desk: Kisan Andolan:  पंजाब सरकार की 'लैंड पूलिंग' नीति (Punjab Land Pooling Policy) के खिलाफ किसानों का विरोध अब और भी तेज़ हो गया है. इस नीति को लेकर किसानों का गुस्सा इतना बढ़ गया है कि यह मामला अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) तक पहुँच गया है. आज, संयुक्त किसान मोर्चा (Sanyukt Kisan Morcha) के बैनर तले किसान अपनी एकजुटता दिखाते हुए प्रदेश के 23 जिलों में एक विशाल 'ट्रैक्टर मार्च' (Tractor March) निकालने वाले हैं. यह मार्च सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक निकलेगा, जो गाँवों के भीतर तक अपनी आवाज़ पहुँचाएगा. किसानों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यह उनकी 'दृढ़ लड़ाई' है और जब तक सरकार इस विवादास्पद नीति को वापस नहीं ले लेती, उनका संघर्ष लगातार जारी रहेगा.

क्या है सरकार की 'लैंड पूलिंग' नीति, जिससे किसान आक्रोशित हैं?

लैंड पूलिंग योजना (Land Pooling Scheme) के तहत, पंजाब सरकार का लक्ष्य राज्य भर से लगभग 65,000 एकड़ ज़मीन (65,000 Acre Land Acquisition) का अधिग्रहण करना है. इस नीति में, जब सरकार किसानों से उनकी ज़मीन लेती है, तो वह मुआवज़े के तौर पर उन्हें सीधे नकद राशि (No Cash Compensation) नहीं देती. बल्कि, इसके बजाय, सरकार उसी अधिग्रहित ज़मीन के विकसित होने के बाद, उस पर आवासीय (Residential Plots) और व्यावसायिक भूखंड (Commercial Plots) विकसित करके किसानों को भूखंड (Plots in Lieu of Land) उपलब्ध कराती है. वर्तमान सरकार ने इस संबंध में एक नई नीति तैयार की है, और जिन क्षेत्रों में यह योजना लागू की जानी है, वहाँ की भूमि के लिए बाकायदा अधिसूचना (Notification Issued) भी जारी कर दी गई है. इन क्षेत्रों को विकसित करके यहाँ शहरी सम्पदाएँ (Urban Estates Development) विकसित करने की योजना है.

रजिस्ट्री और सीएलयू (CLU) पर रोक: किसानों का कहना है कि जिन क्षेत्रों के लिए सरकार ने लैंड पूलिंग की अधिसूचना जारी की है, वहाँ अब ज़मीन की रजिस्ट्री (Land Registry) और सीएलयू (भूमि उपयोग परिवर्तन – Change of Land Use) को बंद कर दिया गया है, जिससे किसान अत्यधिक परेशान हैं. वे अपनी ज़मीन न बेच पा रहे हैं और न ही उसका उपयोग कर पा रहे हैं.
'स्वैच्छिक' नहीं, 'ज़बरदस्ती' जैसा अधिग्रहण: सरकार इस नीति को 'स्वैच्छिक' (Voluntary Scheme) बता रही है, लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद से यह किसानों को एक 'ज़बरदस्ती अधिग्रहण' (Forced Acquisition) जैसा लग रहा है. क्योंकि ज़मीन पर न तो किसान अपने मकान बना पा रहे हैं और न ही उस पर किसी प्रकार का कर्ज़ ले पा रहे हैं. अधिकारी पंजीकरण न करके किसानों को असहाय बना रहे हैं.


मनमाना सालाना भत्ता: किसानों ने इस बात पर भी गंभीर सवाल उठाया है कि सरकार ने बिना किसी उचित सर्वेक्षण (No Proper Survey) के ज़मीन का सालाना भत्ता (Annual Allowance) कैसे तय कर दिया? सरकार का कहना है कि जब तक क्षेत्र का विकास नहीं हो जाता, किसान अपनी ज़मीन पर खेती कर सकेंगे और उन्हें हर साल ₹50,000 प्रति एकड़ (₹50,000 per Acre) का भत्ता मिलेगा. लेकिन किसानों का कहना है कि अगर यही ज़मीन वे लीज़ (Lease) पर दें, तो उन्हें सालाना ₹80,000 तक की आमदनी (Rs 80,000 Income) हो सकती है, जो सरकार द्वारा दिए जा रहे भत्ते से काफी ज़्यादा है.


पिछले अनुभवों से डर: किसान दर्शन सिंह जैसे कई किसानों ने बताया कि उनके गाँव की ज़मीन 14 साल पहले लैंड पूलिंग में ली गई थी, लेकिन आज तक उन्हें 'ओएचटी' (OHM) श्रेणी के प्लॉट नहीं मिले हैं. पहले जारी किया गया लेटर ऑफ इंटेंट (LOI) बाद में मंज़ूर नहीं हुआ. अब कहा जा रहा है कि 1600 वर्ग गज का प्लॉट दिया जाएगा, लेकिन किसानों का सवाल यह है कि वे इतने छोटे प्लॉट (Small Plot for Farming) में कैसे खेती कर सकते हैं या अपना गुज़ारा चला सकते हैं.

किसानों का कहना है कि वे इस 'काली' नीति को रद्द करवाए बिना पीछे हटने वाले नहीं हैं, और सरकार को जल्द से जल्द इस मामले में उनकी मांगों को पूरा करना होगा. इस आंदोलन का भविष्य और सरकार का अगला कदम देखने लायक होगा.
 

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