Kirat Avatar: जब स्वयं भगवान शिव ने ली अर्जुन की कठिन परीक्षा और दिया पाशुपतास्त्र का वरदान

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News India Live, Digital Desk: भगवान शिव, अपने अद्भुत रूपों और लीलाओं के लिए जाने जाते हैं, उन्हीं में से एक है उनका किरात अवतार' जिसका वर्णन मुख्य रूप से महाभारत के पौराणिक प्रसंगों में मिलता है। यह कथा भगवान शिव के सर्वोच्च भक्त, वीर अर्जुन के प्रति उनके असीम प्रेम और आशीर्वाद को दर्शाती है।

महाभारत युद्ध के पश्चात जब पांडवों को अपने ही सगे-संबंधियों का वध करने का दुख सताने लगा, तो धर्मराज युधिष्ठिर के आदेश पर पांचों पांडव द्रौपदी के साथ पापों से मुक्ति और भगवान शिव के दर्शन के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए। मार्ग में महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को समझाते हुए बताया कि उन्हें शिव की घोर तपस्या करनी चाहिए ताकि वे अपने सभी पापों से मुक्त हो सकें और आगामी संकटों से बचाव के लिए दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति हो। वेदव्यास की प्रेरणा से अर्जुन दिव्य अस्त्रों की तलाश में इंद्राकिल पर्वत पर घोर तपस्या में लीन हो गए, उनका उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे शक्तिशाली 'पाशुपतास्त्र' प्राप्त करना था।

जब अर्जुन की तपस्या चरम पर पहुंची और उसकी कठोरता से पृथ्वी कांपने लगी, तो देवताओं ने चिंता व्यक्त की। इस पर स्वयं भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा लेने का निर्णय किया। उन्होंने शिकारी 'किरात' का वेश धारण किया और अपनी पत्नी पार्वती के साथ, जिन्होंने किरातिनी का रूप लिया था, और गणों के साथ, जिन्होंने भील और भीलनी का वेश धारण किया था, अर्जुन की तपस्या भूमि की ओर चले।

ठीक उसी समय 'मूका' नामक एक मायावी दानव, जिसने सूअर का विकराल रूप ले लिया था, अर्जुन को परेशान करने आया। जैसे ही वह दानव अर्जुन की ओर झपटा, अर्जुन और किरात दोनों ने एक साथ उस सूअर पर तीर चला दिया। सूअर वहीं धराशाई हो गया। अब इस मृत सूअर के अधिकार को लेकर अर्जुन और किरात के बीच बहस छिड़ गई। किरात रूप में शिव ने दावा किया कि उन्होंने पहले वार किया था, जबकि अर्जुन अपने बाण के पहले लगने की बात पर अड़ा रहा। बहस जल्द ही तीखे वाद-विवाद और फिर युद्ध में बदल गई।

दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। अर्जुन ने अपने सारे अस्त्र-शस्त्र उस मायावी शिकारी पर चला दिए, लेकिन कोई भी वार किरात को क्षति नहीं पहुंचा सका। अंततः जब अर्जुन के सारे शस्त्र समाप्त हो गए, तो उसने युद्ध बंद कर दिया और अपनी हार स्वीकार करते हुए अपनी मानसिक शक्ति और भक्ति से भगवान शिव का ध्यान किया। अपनी मानसिक पूजा में जब उसने महादेव को पुष्प अर्पित किए, तो उसे आश्चर्य हुआ कि वही फूल किरात रूपी शिकारी के चरणों में प्रकट हो रहे थे।

यह देखकर अर्जुन तुरंत समझ गए कि किरात और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं। उन्होंने अपने आराध्य के चरणों में दंडवत प्रणाम किया और उनसे क्षमा याचना की। भगवान शिव, अर्जुन की भक्ति, निष्ठा और युद्ध कला से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अर्जुन को अपना असली रूप दिखाया, उसे गले लगाया और आशीर्वाद दिया। प्रसन्न होकर महादेव ने अर्जुन को अपने सबसे शक्तिशाली अस्त्र 'पाशुपतास्त्र' से नवाजा और सभी पापों से मुक्ति का वरदान दिया। इस प्रकार, किरात अवतार के माध्यम से शिव ने न केवल अर्जुन की रक्षा की बल्कि उसे वह दिव्यास्त्र भी प्रदान किया, जो उसे आगे के युद्ध में विजयी बनाने में सहायक सिद्ध हुआ।

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