Kali Puja 2025 : शक्ति और शौर्य की देवी को कैसे करें प्रसन्न? जानें तारीख, मुहूर्त और गुप्त रहस्य
News India Live, Digital Desk: Kali Puja 2025 : हर साल कार्तिक अमावस्या तिथि पर मां काली की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है, जिसे 'श्यामा पूजा' या 'महानिशा पूजा' भी कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में मां काली की विधि-विधान से पूजा की जाती है, वहां नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता और सभी कष्टों, दुखों और संकटों का नाश हो जाता है. घर में सुख-शांति बनी रहती है और देवी अपने भक्तों को शक्ति, साहस और शांति का आशीर्वाद देती हैं.
कब है काली पूजा 2025? (Kali Puja 2025 Date)
साल 2025 में काली पूजा सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी. यह पर्व कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर आता है, ठीक दिवाली के दिन.
काली पूजा 2025 के लिए शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)
मां काली की पूजा मुख्य रूप से निशिता काल (आधी रात) में की जाती है, क्योंकि यह समय मां काली की उपासना के लिए सबसे शक्तिशाली माना जाता है.
- अमावस्या तिथि शुरू: 20 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:14 बजे से.
- अमावस्या तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2025 को दोपहर 03:24 बजे तक.
- निशिता काल पूजा मुहूर्त: 20 अक्टूबर की रात 11:41 बजे से 21 अक्टूबर को 12:31 बजे तक (यह लगभग 50 मिनट की अवधि है, जो पूजा के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है).
यह शुभ मुहूर्त मां काली की उपासना के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है.
मां काली के शक्तिशाली मंत्र (Maa Kali Mantra)
मां काली को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए. इन मंत्रों का जाप पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करने से आपको विशेष लाभ मिल सकता है:
- काली बीज मंत्र: ॐ क्रीं काली। (इस मंत्र का अर्थ है: हे काली मां, मेरे कष्टों का अंत करें और मुझे खुशहाल जीवन दें. आपको मेरा नमन है.)
- काली माता मंत्र: ॐ क्रीं कालिकायै नमः।
- महाकाली मंत्र: ॐ श्री महा कालिकायै नमः।
- काली गायत्री मंत्र: ॐ महा कल्यै च विद्महे स्मसन वासिन्यै च धीमहि तन्नो काली प्रचोदयात।
- भद्रकाली मंत्र: ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥
- सप्ताक्षरीय काली मंत्र: ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
मां काली को क्या भोग लगाएं? (Maa Kali Bhog)
मां काली को भोग में कई तरह की चीजें अर्पित की जाती हैं. देवी को फल, मिठाई और दालें विशेष रूप से प्रिय हैं. पश्चिम बंगाल में, जहां काली पूजा का खासा महत्व है, वहां खिचड़ी, लबड़ा (मिली-जुली सब्ज़ियों की भाजी), लुची, पायेश (खीर), भाजा और बंगाली मिठाइयां चढ़ाई जाती हैं. कई स्थानों पर तांत्रिक पूजा के दौरान मछली और मांस भी चढ़ाया जाता है. लाल गुड़हल के फूल, नींबू की माला, सूजी का हलवा और गुड़ भी मां को अति प्रिय हैं और भोग में शामिल किए जाते हैं.
काली पूजा का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. यह घर में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-शांति और समृद्धि लाता है.
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