झारखंड सरकार से हाईकोर्ट की दो टूक ड्राफ्ट बन गया है तो पेसा PESA कानून लागू क्यों नहीं हुआ?

Post

News India Live, Digital Desk : झारखंड अलग राज्य बने हुए करीब 25 साल हो गए हैं। यह राज्य मुख्य रूप से आदिवासियों के हक़ और जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए बना था। लेकिन अजीब विडंबना देखिये कि आदिवासियों को सबसे ज्यादा ताकत देने वाला पेसा कानून (PESA Act) आज तक यहाँ पूरी तरह लागू ही नहीं हो पाया है।

अब इस मामले में झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) ने सख्त रुख अपना लिया है। कोर्ट ने हेमंत सोरेन सरकार से साफ-साफ पूछ लिया है कि "भाई, आखिर यह कानून कब लागू होगा? हमें एक समय सीमा बताइए।"

कोर्ट में क्या हुआ?
मामला चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने था। अरुण कुमार दुबे नाम के एक याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका (PIL) डाली थी। उनका कहना था कि इतने साल हो गए, सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने पेसा एक्ट की नियमावली (Rules) को फाइनल नहीं किया। बिना पेसा कानून के ही पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, जो कि आदिवासी समाज के साथ नाइंसाफी है।

इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार को 'कागजी बातें' छोड़कर ठोस जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई ड्राफ्ट तैयार है? और अगर है, तो उसे धरातल पर उतारने में इतना वक़्त क्यों लग रहा है?

सरकार का क्या कहना है?
सरकार की तरफ से महाधिवक्ता (Advocate General) ने कोर्ट को भरोसा दिलाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, "माय लॉर्ड, ड्राफ्ट (मसौदा) बिल्कुल तैयार है। बस इसे कैबिनेट से मंजूरी मिलने और जनता के सुझाव (Public Comments) के लिए सार्वजनिक करने की देर है। जल्द ही यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।"

हालांकि, कोर्ट ने सिर्फ बातों पर भरोसा नहीं किया और सरकार को निर्देश दिया कि वो शपथ पत्र (Affidavit) दाखिल करके बताए कि फाइनल तारीख क्या होगी।

आम जनता के लिए PESA क्यों ज़रूरी है?
अगर आप सोच रहे हैं कि यह पेसा कानून क्या बला है, तो आसान भाषा में समझिए:
यह कानून ग्राम सभा को सबसे ज्यादा पावरफुल बनाता है।

  1. जमीन पर हक़: आदिवासियों की जमीन उनकी मर्जी के बिना नहीं ली जा सकती।
  2. संसाधन पर हक़: गांव के जंगल, रेत, और पानी पर गांव वालों का हक़ होगा।
  3. विवाद सुलझाना: गांव के छोटे-मोटे झगड़े पुलिस के पास जाने के बजाय गांव में ही सुलझाए जाएंगे।

हमारा नजरिया
झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है। यहाँ पेसा कानून लागू न होना, इंजन के बिना गाड़ी चलाने जैसा है। हाई कोर्ट की यह सख्ती स्वागत योग्य है। उम्मीद है कि सरकार अब फाइलों से धूल झाड़ेगी और झारखंड के आदिवासियों को उनका वो हक़ देगी, जिसके लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया है।

अब देखना यह है कि अगली सुनवाई में सरकार "तारीख" बताती है या फिर कोई "नया बहाना"! आपकी इस पर क्या राय है? क्या पेसा कानून से सच में बदलाव आएगा?

 

--Advertisement--