Jharkhand Forest Department : तीन महीने में सारंडा को sanctuary घोषित करो, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई सरकार को फटकार

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News India Live, Digital Desk: झारखंड के ऐतिहासिक सारंडा जंगल को बचाने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर बेहद सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने केंद्र और झारखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए आदेश दिया है कि अगले तीन महीनों के भीतर सारंडा को 'अभयारण्य' (Sanctuary) या 'संरक्षित क्षेत्र' (Conservation Reserve) के रूप में अधिसूचित करने की प्रक्रिया पूरी की जाए।

यह सख्त आदेश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें सारंडा के जंगलों में बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध खनन और पेड़ों की कटाई पर चिंता जताई गई थी।

क्या है पूरा मामला और क्यों नाराज हुआ कोर्ट?

सारंडा, जो एशिया का सबसे बड़ा और घना साल का जंगल माना जाता है, दशकों से अंधाधुंध खनन का शिकार रहा है। इससे न केवल यहां की बहुमूल्य हरियाली खत्म हो रही है, बल्कि यह हाथियों का एक महत्वपूर्ण कॉरिडोर (आने-जाने का रास्ता) भी है, जो बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर पहले भी कई बार चिंता जताई थी। पिछली सुनवाई में, कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने सिफारिश की थी कि सारंडा के 625 वर्ग किलोमीटर के मुख्य क्षेत्र को 'संरक्षित क्षेत्र' या 'अभयारण्य' घोषित किया जाना चाहिए, ताकि यहां किसी भी तरह के खनन या गैर-वानिकी गतिविधियों पर स्थायी रूप से रोक लग सके।

लेकिन सरकार की तरफ से इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसी ढुलमुल रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि अब और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट ने साफ कर दिया कि अगर तीन महीने में यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।

क्यों खास है सारंडा का जंगल?

सारंडा सिर्फ पेड़ों का झुंड नहीं है, यह एक पूरा इको-सिस्टम है। 'सात सौ पहाड़ियों की भूमि' के नाम से मशहूर यह जंगल हाथियों, बाघों और अनगिनत वन्यजीवों का घर है। यह क्षेत्र झारखंड और ओडिशा के बीच हाथियों के आने-जाने का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है। यहां चल रहे खनन ने इस रास्ते को लगभग बंद कर दिया है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उम्मीद जगी है कि अब सारंडा के जंगल बच सकेंगे। इसे अभयारण्य घोषित करने से न केवल अवैध खनन पर लगाम लगेगी, बल्कि वन्यजीवों को भी एक सुरक्षित घर मिल पाएगा। यह फैसला झारखंड की पर्यावरण-सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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