Janmashtami 2025: जब नियति ने रचा इतिहास, जानिए देवकी और वासुदेव का त्याग भरा जीवन

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News India Live, Digital Desk: जन्माष्टमी 2025 के इस पावन अवसर पर, हम उस माता-पिता के त्याग और कष्टों को याद करते हैं जिनके यहाँ स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया. हम बात कर रहे हैं देवकी और वासुदेव की, जिनका जीवन द्वापर युग में मथुरा के क्रूर शासक कंस के कारण अनेकों कष्टों और यातनाओं से भरा रहा. देवकी, कंस की सगी बहन थीं और वासुदेव, मथुरा के प्रसिद्ध योद्धा थे. उनका विवाह मथुरा में बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ था.

विवाह के पश्चात जब कंस अपनी बहन देवकी को वासुदेव के घर छोड़ने जा रहा था, तभी एक आकाशवाणी हुई. इस आकाशवाणी ने कंस को चौंका दिया और कहा, "अरे मूर्ख कंस, जिसे तू इतनी प्रेमपूर्वक लेकर जा रहा है, उसी देवकी की आठवीं संतान तेरी मृत्यु का कारण बनेगी." यह भविष्यवाणी सुनते ही कंस क्रोध से भर उठा और उसने तत्काल देवकी को मारने के लिए अपनी तलवार उठा ली. वासुदेव ने बीच-बचाव किया और कंस को समझाया कि यदि संतान ही उसकी मृत्यु का कारण है, तो उसे देवकी को मारने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे अपनी सभी संतानों को जन्म लेते ही कंस को सौंप देंगे. कंस वासुदेव के इस प्रस्ताव से सहमत हो गया, लेकिन अपनी बहन देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया, जहाँ उन्हें कठोर परिस्थितियों में रखा गया.

कारागार में देवकी और वासुदेव की सात संतानों का जन्म हुआ. जैसे ही हर संतान का जन्म होता, क्रूर कंस बिना किसी दया के उन्हें मार डालता. एक-एक कर अपनी सात संतानों को खोने का दुख देवकी और वासुदेव के लिए असहनीय था. हर बार शिशु को कंस के हाथों में देते हुए उनका हृदय चीत्कार उठता था, लेकिन वे विवश थे. इस दुख और पीड़ा में भी उन्होंने अपनी आस्था और धैर्य नहीं खोया. जब देवकी के गर्भ से सातवें पुत्र बलराम का जन्म होने वाला था, तब भगवान विष्णु के आदेश से योगमाया ने बालक को देवकी के गर्भ से निकालकर वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया. इस तरह बलराम कंस के प्रकोप से बच गए.

अंततः वह शुभ घड़ी आई जब देवकी की आठवीं संतान, भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ. कृष्ण का जन्म निशीथ काल में, गहन रात्रि में हुआ, जब चारों ओर घना अंधेरा था और कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए. भगवान विष्णु के निर्देशानुसार, वासुदेव बालक कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल ले गए, जहाँ नंद बाबा और यशोदा मैया उनके पालक माता-पिता बने. उन्होंने नवजात कृष्ण को यशोदा की नवजात कन्या से बदल दिया और वापस कारागार आ गए. कंस ने इस कन्या को भी मारने का प्रयास किया, लेकिन वह देवी योगमाया थीं जो कंस के हाथों से छूटकर आकाश में चली गईं और उसे बताया कि उसकी मृत्यु का कारण बालक जीवित है और जल्द ही उसका वध करेगा. यह सुनकर कंस भयभीत हो गया, लेकिन उसे अपनी नियति का एहसास हो गया था.

देवकी और वासुदेव को कारागार से तब तक मुक्ति नहीं मिली जब तक श्रीकृष्ण ने बड़े होकर कंस का वध नहीं कर दिया. कृष्ण ने न केवल अपने माता-पिता को कंस के कैद से मुक्त कराया, बल्कि मथुरा को भी उसके अत्याचारों से आज़ादी दिलाई. उनका जीवन दर्शाता है कि सबसे गहन अंधेरे और पीड़ा में भी, धैर्य, विश्वास और धार्मिकता ही अंततः विजय दिलाती है. जन्माष्टमी का यह पर्व न केवल भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है, बल्कि उनके माता-पिता के अपार त्याग, दृढ़ता और ईश्वरीय न्याय पर उनके अडिग विश्वास का भी प्रतीक है.

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