Indian Railways Halal Meat Controversy : ट्रेनों में परोसे जा रहे नॉन-वेज खाने पर बड़ा बवाल, NHRC ने इसे बताया मानवाधिकार का उल्लंघन

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News India Live, Digital Desk : हम और आप जब ट्रेन (Indian Train) में सफर करते हैं और भूख लगती है, तो पैंट्री कार से वेज या नॉन-वेज खाना आर्डर कर देते हैं। नॉन-वेज खाने वाले लोग अक्सर चिकन बिरयानी या चिकन करी मंगाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि आपकी प्लेट में जो मीट आ रहा है, वह 'हलाल' (Halal) है या 'झटका' (Jhatka)?

शायद नहीं सोचा होगा। लेकिन अब यह मुद्दा बहुत बड़ा बन गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारतीय रेलवे और रेलवे बोर्ड को एक सख्त नोटिस जारी किया है। आयोग ने रेलवे से सीधा सवाल पूछा है— "आखिर भारतीय ट्रेनों में सिर्फ और सिर्फ 'हलाल' सर्टिफाइड मीट ही क्यों परोसा जा रहा है? क्या यह बाकी यात्रियों के अधिकारों का हनन नहीं है?"

आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि पूरा मामला क्या है और यह आपके लिए क्यों मायने रखता है।

विवाद की जड़ क्या है?

दरअसल, यह पूरा मामला 'पसंद के अधिकार' (Right to Choice) का है। भारत में अलग-अलग धर्मों और मान्यताओं के लोग रहते हैं।

  • मुस्लिम समुदाय में सिर्फ 'हलाल' मीट खाने की मान्यता है।
  • वहीं, हिंदू और सिख धर्म के कई लोग 'झटका' मीट खाना पसंद करते हैं या फिर हलाल मीट खाना उनके धर्म में मना है (जैसे सिख धर्म में)।

शिकायत यह है कि IRCTC (रेलवे की कैटरिंग) और प्राइवेट वेंडर ट्रेनों में जो नॉन-वेज खाना परोसते हैं, वह बाय डिफ़ॉल्ट 'हलाल' ही होता है। मेन्यू में कहीं भी यह ऑप्शन नहीं दिया जाता कि आपको झटका चाहिए या हलाल। यानी, अनजाने में उन लोगों को भी हलाल खिलाया जा रहा है, जो इसे खाना नहीं चाहते।

NHRC ने इसे क्यों माना 'मानवाधिकार उल्लंघन'?

मानवाधिकार आयोग का कहना है कि खाने-पीने का चुनाव करना इंसान का बुनियादी हक़ है। अगर कोई संस्था (वो भी सरकारी, जैसे रेलवे) सिर्फ़ एक ही तरीके का मीट बेच रही है, तो वह परोक्ष रूप से यात्रियों को उसे खाने पर मजबूर कर रही है।

आयोग ने सख्त लहजे में कहा है किलोगों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। आप किसी पर अपनी पसंद नहीं थोप सकते। अगर किसी को झटका मीट खाना है, तो उसे वो विकल्प मिलना चाहिए।"

क्या हैं यात्रियों के आरोप?

एक वकील ने इस मुद्दे पर NHRC में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि रेलवे के ई-कैटरिंग और अन्य कॉन्ट्रैक्ट्स में ऐसे नियम हैं जो केवल हलाल मीट को प्रमोट करते हैं। इससे न सिर्फ़ यात्रियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं, बल्कि जो खटीक समाज (जो पारंपरिक रूप से झटका मीट का काम करते हैं) का रोजगार है, उस पर भी असर पड़ रहा है।

अब रेलवे को क्या करना होगा?

NHRC ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और रेलवे मंत्रालय को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है।

  1. रेलवे को बताना होगा कि क्या कोई लिखित नीति (Policy) है जो सिर्फ हलाल मीट को अनिवार्य करती है?
  2. उन्हें रिपोर्ट देनी होगी कि क्या वे भविष्य में दोनों तरह के (हलाल और झटका) विकल्प यात्रियों को देंगे?

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