Indian Pharma Industry: अमेरिकी 'टैरिफ' की कड़वी गोली से क्यों घबराया भारत का दवा उद्योग? फिच ने दी बड़ी चेतावनी

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भारत, जिसे गर्व से 'दुनिया की फार्मेसी' (Pharmacy of the World) कहा जाता है, आज एक बड़े अंतरराष्ट्रीय संकट और अनिश्चितता के मुहाने पर खड़ा है। कारण है अमेरिका, जो भारतीय दवा उद्योग का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण बाजार है, द्वारा आयातित दवाओं पर टैरिफ (Tariff) यानी आयात शुल्क लगाने की बढ़ती आशंका। इस खतरे को भांपते हुए, प्रतिष्ठित वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने एक गंभीर चेतावनी जारी की है, जिसने पूरे भारतीय फार्मा उद्योग में खलबली मचा दी है।

फिच का कहना है कि अगर अमेरिका भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाता है, तो इससे भारतीय दवा कंपनियों के मुनाफे और राजस्व पर "सीधा और नकारात्मक प्रभाव" पड़ सकता है। यह खबर उन लाखों निवेशकों के लिए भी चिंता का विषय है, जिनका पैसा भारत की टॉप फार्मा कंपनियों में लगा है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते है कि यह संकट कितना बड़ा है और इससे बचने का रास्ता क्या है।

 

आखिर क्यों है भारतीय फार्मा के लिए अमेरिकी बाजार 'संजीवनी बूटी'?

इस चेतावनी के महत्व को समझने के लिए, पहले यह जानना ज़रूरी है कि अमेरिकी बाजार भारतीय दवा कंपनियों के लिए 'सोने का अंडा देने वाली मुर्गी' क्यों है।

  • सबसे बड़ा निर्यातक बाजार: अमेरिका भारतीय फार्मास्यूटिकल निर्यात का सबसे बड़ा गंतव्य है। भारत की कुल दवा निर्यात आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा (लगभग 30-40%) अकेले अमेरिकी बाजार से आता है।
  • जेनेरिक दवाओं का गढ़: भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं (Generic Drugs) का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली हर तीसरी या चौथी दवा 'मेड इन इंडिया' होती है। ये दवाएं सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली होती है जिससे अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली पर भी बोझ कम होता है।
  • उच्च लाभ मार्जिन: अमेरिकी बाजार में भारतीय कंपनियों को अन्य बाजारों की तुलना में बेहतर लाभ मार्जिन मिलता है।

संक्षेप में, अमेरिकी बाजार का स्वास्थ्य सीधे तौर पर भारत की टॉप दवा कंपनियों (जैसे सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, सिप्ला, ल्यूपिन आदि) के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।

 

क्या है 'टैरिफ' का यह नया संकट?

'टैरिफ' एक तरह का टैक्स या आयात शुल्क (Import Duty) होता है, जो कोई देश दूसरे देश से आने वाले माल पर लगाता ਹੈ।

  • कैसे होगा नुकसान?: अगर अमेरिका भारत से आने वाली दवाओं पर 5% या 10% का टैरिफ लगाता है, तो अमेरिकी वितरकों के लिए भारतीय दवाएं उतनी ही महंगी हो जाएंगी।
  • दोहरे नुकसान का खतरा:
    1. या तो भारतीय कंपनियों को अपनी दवाओं की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी, जिससे वे अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगी और उनकी बिक्री घट सकती है।
    2. या फिर, बाजार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए भारतीय कंपनियों को यह टैरिफ का बोझ खुद उठाना पड़ेगा और अपनी दवाओं की कीमतें कम करनी पड़ेंगी, जिससे उनका मुनाफे का मार्जिन (Profit Margin) सीधे तौर पर घट जाएगा।

 

फिच रेटिंग्स की चेतावनी: मुनाफे पर पड़ेगा सीधा असर

फिच रेटिंग्स ने  अपनी रिपोर्ट में इसी खतरे को रेखांकित किया है।भारतीय फार्मा कंपनियां पहले से ही अमेरिकी बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और मूल्य निर्धारण के दबाव (Pricing Pressure) का सामना कर रही हैं। ऐसे में, अगर टैरिफ का एक और बोझ उन पर डाला जाता है, तो यह उनके वित्तीय स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा झटका होगा। इससे उनकी क्रेडिट रेटिंग पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता ਹੈ।

 

उम्मीद की किरण: भारत-अमेरिका व्यापार सौदा (India-US Trade Deal)

इस पूरी अनिश्चितता के बीच, उम्मीद की एकमात्र किरण दोनों देशों के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार सौदा (Free Trade Agreement - FTA) है।

  • क्या होगा फायदा?: फिच ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर भारत और अमेरिका के बीच एक सफल व्यापार सौदा हो जाता है, तो यह टैरिफ का खतरा पूरी तरह से टल सकता है। एक अच्छे ट्रेड डील के तहत, फार्मा उत्पादों को किसी भी प्रकार के अतिरिक्त शुल्क से छूट मिल सकती है, जो भारतीय उद्योग के लिए एक बहुत बड़ी जीत होगी।
  • रणनीतिक महत्व: दोनों देश, विशेष रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, अपने रणनीतिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के इच्छुक है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वे जल्द ही इस व्यापारिक गतिरोध का कोई न कोई समाधान निकाल लेंगे।

 

क्या होगा इसका दूरगामी असर?

यह मुद्दा सिर्फ फार्मा कंपनियों तक ही सीमित नहीं है, इसका असर और भी व्यापक हो सकता है:

  • निवेशकों पर असर: टैरिफ की आशंका से भारतीय शेयर बाजार में फार्मा शेयरों पर दबाव देखने को मिल सकता है।
  • 'मेक इन इंडिया' पर असर: यह 'मेक इन इंडिया' अभियान के लिए भी एक चुनौती है, जो भारत को एक वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में स्थापित करना चाहता है।
  • अमेरिकी मरीजों पर असर: अगर भारतीय जेनेरिक दवाएं महंगी होती हैं, तो इसका अंतिम बोझ अमेरिका के आम मरीजों की जेब पर भी पड़ेगा।

कुल मिलाकर, भारतीय फार्मा उद्योग इस वक्त एक दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ टैरिफ का गहराता संकट है, तो दूसरी तरफ एक लाभकारी व्यापार सौदे की उम्मीद है। आने वाले कुछ महीने यह तय करेंगे कि 'दुनिया की फार्मेसी' का भविष्य कितना उज्ज्वल या चुनौतीपूर्ण होगा।

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