रूसी तेल मुद्दे पर ट्रंप की धमकियों का भारत ने कड़ा और करारा जवाब दिया

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे ऊंची कीमत पर बेचने का आरोप लगाया था। ट्रंप के इस बयान के बाद भारत ने करारा जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत की प्राथमिकता अपने लोगों को सस्ती और स्थिर ऊर्जा उपलब्ध कराना है। उन्होंने यह भी कहा कि जब यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो यूरोप ने पारंपरिक आपूर्ति श्रृंखला को अपनी ओर स्थानांतरित कर लिया। जिसके कारण भारत को रूस से सस्ता तेल मंगवाने का विकल्प अपनाना पड़ा। उस समय अमेरिका ने भी इस कदम का समर्थन किया था ताकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार में अस्थिरता न फैले। 

अमेरिका और यूरोप दोहरे मापदंड क्यों अपनाते हैं?
रणधीर जायसवाल ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के दोहरे मापदंड पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जो देश आज भारत की आलोचना कर रहे हैं, वे खुद भी रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार कर रहे हैं। यूरोपीय संघ ने 2024 में रूस से 67.5 अरब यूरो का सामान और 17.2 अरब यूरो की सेवाएँ खरीदीं। इतना ही नहीं, उसने रूस से रिकॉर्ड 16.5 करोड़ टन एलएनजी गैस भी मंगवाई, जो 2022 के मुकाबले कहीं ज़्यादा है। ऐसे में भारत पर निशाना साधना एकतरफ़ा और अनुचित है। 

भारत ने आंकड़ों से खोली पोल
भारत ने अपनी बात सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस आंकड़ों से भी रखी। विदेश मंत्रालय के अनुसार, रूस और यूरोप के बीच व्यापार सिर्फ़ तेल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें उर्वरक, रसायन, खनिज, इस्पात और मशीनरी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। जबकि अमेरिका ख़ुद रूस से यूरेनियम, पैलेडियम, उर्वरक और अन्य रासायनिक पदार्थों का लगातार आयात करता है। जिससे पता चलता है कि जब भारत अपने राष्ट्रीय हित में ऐसा करता है, तो आलोचना क्यों होती है?

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि
है। तेल आयात भारत के लिए विलासिता नहीं, बल्कि आवश्यकता है। ताकि आम आदमी को सस्ती ऊर्जा मिल सके। विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत किसी के दबाव में नहीं आएगा और अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए हर ज़रूरी कदम उठाएगा। उसने यह भी संकेत दिया कि अमेरिका और यूरोप के साथ बातचीत के ज़रिए मुद्दों को सुलझाने की कोशिश जारी रहेगी, लेकिन भारत की नीति स्वाभिमानी और तार्किक होगी। 

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