झारखंड में अब गांव की सरकार तय करेगी बालू का रेट ,पैसा कानून लागू होते ही शुरू होगी घाटों की नीलामी
News India Live, Digital Desk: झारखंड में "बालू" (Sand) पिछले कुछ समय से सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। किसी का मकान आधा बन कर रुका है, तो कोई सरकारी प्रोजेक्ट लेट हो रहा है। वजह साफ़ है बालू घाटों की नीलामी का पेंच फंसा हुआ था। लेकिन अब लग रहा है कि जल्द ही नदियों से कानूनी तरीके से बालू निकलना शुरू हो जाएगा।
ताज़ा खबर यह है कि राज्य सरकार बालू घाटों की नीलामी शुरू करने वाली है, लेकिन इस बार पेसा कानून (PESA Act) के नियमों को पूरी तरह लागू करने के बाद ही यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
अब क्या बदलने वाला है? (What's changing now?)
सीधा सा फंडा है भाई, अब दिल्ली या रांची में बैठकर अफसर यह तय नहीं करेंगे कि किस गांव की नदी से कितना बालू निकलेगा। पेसा कानून लागू होने का मतलब है कि "ग्राम सभा" (Gram Sabha) ही बॉस होगी।
सरकार ने फैसला किया है कि अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) में जो बालू घाट आते हैं, उनका जिम्मा अब स्थानीय पंचायत और ग्राम सभा के पास होगा। नीलामी कैसे होगी, किसको पट्टा मिलेगा, यह सब ग्राम सभा की सहमति से होगा। इसका सीधा फायदा स्थानीय आदिवासियों और मूलवासियों को मिलेगा।
क्यों रुका था मामला?
दरअसल, एनजीटी (NGT) की रोक और मॉनसून के अलावा सबसे बड़ी दिक्कत नियमावली की थी। अब सरकार पेसा नियमावली को अंतिम रूप दे रही है। जैसे ही यह नियम पक्के हो जाएंगे, बालू घाटों के टेंडर निकलना शुरू हो जाएंगे।
सरकार का मानना है कि जब गांव के लोग खुद इसकी निगरानी करेंगे, तो अवैध खनन (Illegal Mining) पर भी लगाम लगेगी और बालू की कालाबाजारी रुकेगी। यानी, जो बालू आज ब्लैक में महंगा मिल रहा है, वो आम आदमी को सही रेट पर मिलने लगेगा।
कब तक मिलेगी राहत?
अब सवाल यह है कि हमारे घर के आंगन में सस्ता बालू कब गिरेगा? देखिये, पेसा नियमावली लगभग तैयार है। उम्मीद है कि बहुत जल्द इसे कैबिनेट की मंजूरी मिल जाएगी और उसके तुरंत बाद नीलामी का शोर सुनाई देगा।
तो जो लोग घर बनाने के लिए महंगे बालू के डर से काम रोके बैठे थे, वे अपनी तैयारी शुरू कर दें। अब "बालू माफिया" का राज नहीं, बल्कि "गांव के लोगों" का राज चलने वाला है। बस थोड़ा सा इंतज़ार और!
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