पटना की राजनीति में गर्मजोशी ,दिलीप जायसवाल मंत्री बने तो क्यों देनी पड़ेगी बीजेपी अध्यक्ष पद की कुर्बानी?

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News India Live, Digital Desk:  बिहार की राजनीति में आजकल गहमागहमी बहुत तेज़ है। जबसे दिलीप जायसवाल जी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री पद की शपथ ली है, तबसे बिहार भाजपा के अंदर एक अलग ही चर्चा शुरू हो गई है। यह खबर एक व्यक्ति के व्यक्तिगत प्रगति की है, लेकिन साथ ही पूरे संगठन में एक बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रही है।

मामला सिर्फ शपथ लेने तक नहीं है

बात दरअसल भाजपा के सिद्धांतों और कामकाज के तरीकों की है। पार्टी की एक बहुत मजबूत और मानी हुई पॉलिसी है— 'एक व्यक्ति, एक पद'। यह सिर्फ एक जुमला नहीं, बल्कि पार्टी को सही से चलाने का तरीका है। इसका सीधा मतलब ये है:

  • दो नावों की सवारी नहीं: कोई भी नेता एक साथ दो बहुत बड़ी जिम्मेदारियां (सरकार में मंत्री और संगठन का प्रदेश अध्यक्ष) नहीं संभाल सकता।
  • काम का बंटवारा: अगर अध्यक्ष मंत्री बन जाएगा, तो वह सरकारी कामों में इतना फंस जाएगा कि संगठन (पार्टी के ज़मीनी काम, मीटिंग्स, कार्यकर्ताओं से मिलना) को संभालने के लिए वक्त ही नहीं मिलेगा। और चुनावी राज्य में संगठन को 'फुल टाइम बॉस' चाहिए होता है।

इसी सिद्धांत के तहत, दिलीप जायसवाल जी को जल्द ही बिहार भाजपा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी छोड़नी पड़ सकती है। यह बात बिहार बीजेपी के गलियारों में लगभग पक्की मानी जा रही है।

समय क्यों अहम है?

इस बदलाव का समय बहुत अहम है। 2025 का विधानसभा चुनाव आने में ज़्यादा देर नहीं है। ऐसे में, पार्टी बिल्कुल भी नहीं चाहेगी कि अध्यक्ष की कुर्सी कुछ दिन भी खाली रहे। नए अध्यक्ष की जिम्मेदारी होगी—

  • जल्द से जल्द चुनाव की तैयारी में कार्यकर्ताओं को झोंकना।
  • नीतीश जी के साथ तालमेल बिठाना।
  • और सबसे बड़ी बात, पार्टी के लिए एक विनिंग रणनीति तैयार करना।

फिलहाल, इस दौड़ में कई नाम सामने आ रहे हैं। कौन जातीय समीकरण बिठाएगा? किसे मिलेगा युवा जोश का साथ? और किसे मिलेगा अनुभव का फल? यह सब फैसला दिल्ली से ही होगा। तब तक दिलीप जायसवाल को बधाई, लेकिन संगठन को अलविदा कहने का वक़्त आ चुका है।

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