उत्तरकाशी में प्रलय: पापा, हम नहीं बचेंगे - नेपाली मां-बाप की चीत्कार, बेटे की तलाश जारी

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उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ी इलाके, जो अपनी नैसर्गिक सुंदरता और शांति के लिए जाने जाते हैं, आज दर्द और विनाश की दास्तां बयां कर रहे हैं। उत्तरकाशी में हुए बादल फटने (Cloudburst) की भीषण घटना ने तबाही का ऐसा मंजर दिखाया है, जिसने कई जिंदगियों को झकझोर दिया है। इसी त्रासदी के बीच, एक नेपाली परिवार का दर्द दिल दहला देने वाला है। उनके बेटे, जो काम की तलाश में इस इलाके में आए थे, सैलाब में लापता हो गए हैं। बेटे की अपने पिता को दी गई अंतिम कॉल, पापा, हम नहीं बचेंगे (Papa, we will not survive), उन भयानक पलों का मार्मिक स्मरण कराती है जब वे सब मौत से जूझ रहे थे।

हर्षिल घाटी में तबाही का मंजर

पांच अगस्त की दोपहर, जब उत्तरकाशी के हर्षिल घाटी (Harshil Valley) क्षेत्र में खिरगंगा के पास अचानक बादल फटा, तो मानो प्रकृति का विकराल रूप सामने आ गया। देखते ही देखते, उफनती खिरगंगा नदी और उससे निकले मलबे (Mudslide) ने घरों, होटलों, दुकानों और सड़कों को अपने साथ बहा ले गया। कई लोग, जिनमें नेपाली मूल के मजदूर भी शामिल थे, अपने काम या ठिकाने पर थे जब यह विनाशकारी बाढ़ (Flash Flood) आई।

अंतिम बातचीत: आशा और भय के बीच

लापता हुए युवक के माता-पिता, विजय सिंह और काली देवी, इस त्रासदी से बचे हुए लोगों में से हैं। घटना से कुछ ही समय पहले, उन्होंने अपने बेटे से बात की थी। उसके कहे शब्द आज भी उनके कानों में गूँज रहे हैं - "पापा, नाले में बहुत पानी आ गया है, हम नहीं बच पाएंगे।" (Papa, the stream has a lot of water, we will not survive.) यह दो मिनट की बातचीत उनकी जिंदगी का आखिरी सुकूनदायक पल था, जिसके बाद उनका बेटा और उसके साथी मलबे में कहीं खो गए। पिता विजय सिंह बताते हैं कि बेटे के फोन से जैसे ही ये आखिरी शब्द सुनाई दिए और कॉल कटी, उनकी दुनिया जैसे थम सी गई। उस समय उनका बेटा अन्य लोगों के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर पानी भरने या किसी और काम के लिए गया था, तभी यह सैलाब उन पर टूट पड़ा।

बेतहाशा इंतज़ार और अनिश्चितता

विजय सिंह और काली देवी, जैसे कई अन्य परिवार, अपने लापता प्रियजनों की तलाश में बेबस खड़े हैं। जिस जगह यह विनाश हुआ, वहां सड़क और पुल बह जाने के कारण बचाव कार्य (Rescue Operation) अत्यंत कठिन हो गया है।सेना, आईटीबीपी (ITBP), एनडीआरएफ (NDRF) और एसडीआरएफ (SDRF) की टीमें लगातार खोजबीन में जुटी हैं, लेकिन मलबे का ढेर इतना बड़ा है कि अपनों को ढूंढ पाना एक पहाड़ जैसी चुनौती बन गया है।जब परिवारजनों से संपर्क नहीं हो पा रहा था, तो वे खुद भी अपने बच्चों तक पहुँचने की कोशिश में निकल पड़े थे, लेकिन बह चुके रास्तों ने उन्हें रोक दिया। सरकारी अधिकारी बचाव प्रयासों का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन जब तक उनका बेटा वापस नहीं आता, यह परिवार गहरे सदमे और अनिश्चितता में जी रहा है।

खोखली आबादी के बीच एक परिवार का दर्द

उत्तरकाशी की इस तबाही में कई परिवार अपने सदस्यों से बिछड़ गए हैं। जहां कई लोगों को बचा लिया गया है, वहीं 50 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं, जिनमें कई युवा और मजदूर शामिल हैं। उन परिवारों के लिए यह मंजर बेहद खौफनाक है, जो सोशल मीडिया पर वीडियो देखकर या अन्य स्रोतों से अपने प्रियजनों के बारे में कुछ जानने की कोशिश कर रहे हैं। नेपाली मूल के 26 मजदूर इस घटना के शिकार हुए थे, जिनमें से कई अभी भी लापता हैं। इस अनिश्चितता और अनकहे दुख का बोझ उन माता-पिता पर टूटा है, जिनके बच्चों का भविष्य कल तक उज्ज्वल था, लेकिन आज वे एक अनजाने सैलाब में गुम हो गए हैं।

बचाव कार्य में चुनौतियाँ

लगातार हो रही बारिश, खराब मौसम और दुर्गम पहाड़ी इलाका बचाव अभियानों में बड़ी बाधाएँ खड़ी कर रहा है।[3] ड्रोन कैमरों और खोजी कुत्तों की मदद ली जा रही है, लेकिन व्यापक तबाही के सामने ये प्रयास भी सीमित दिखाई देते हैं। सरकार ने हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है, लेकिन प्रकृति के प्रकोप के सामने इंसान की लाचारी हर किसी को दिख रही है।
 

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