अमृतसर में आज इतिहास रचा गया अकाल तख्त के सामने झुके पूर्व जत्थेदार, कबूली 2015 की वो बड़ी गलती

Post

News India Live, Digital Desk: आज पंजाब और देश-दुनिया में बसने वाली सिख संगत की नज़रें अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) और श्री अकाल तख्त साहिब पर टिकी हुई थीं। सोमवार का दिन सिख पंथ के लिए बेहद ऐतिहासिक साबित हुआ। 2015 का वो मुद्दा, जिसने पूरी कौम को हिला कर रख दिया था, आज उसका एक अहम अध्याय बंद हो गया है।

अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह (Giani Gurbachan Singh) आज अकाल तख्त साहिब पर पेश हुए। यह वही जत्थेदार हैं जिनके कार्यकाल में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बिना मांगे माफ़ी दी गई थी। उस फैसले ने सिख संगत के दिलों पर जो घाव दिए थे, आज ज्ञानी गुरबचन सिंह ने उसके लिए पंथ से सार्वजनिक माफ़ी मांग ली है।

"मुझसे भूल हुई, संगत बख्श दे"

सिख धर्म में "भूल बख्शाना" और "निर्माता" सबसे ऊपर है। ज्ञानी गुरबचन सिंह ने पाँच सिंह साहिबान के सामने एक बंद लिफाफा और अपना स्पष्टीकरण सौंपा। उन्होंने कबूला कि डेरा मुखी को माफ़ी देने का फैसला गलत था और उससे संगत की भावनाओं को ठेस पहुंची।

मौजूदा जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह और पंज सिंह साहिबान ने उनकी विनम्रता को देखते हुए उन्हें माफ़ तो कर दिया, लेकिन सिख मर्यादा के अनुसार उन्हें 'धार्मिक तनख्वाह' (सजा) भी सुनाई।

क्या सजा मिली है पूर्व जत्थेदार को?

अकाल तख्त से मिली सजा कोई जेल या जुर्माना नहीं होती, बल्कि यह 'सेवा' होती है जिससे अहंकार टूटता है:

  1. सेवा: उन्हें श्री हरिमंदिर साहिब (दरबार साहिब) के लंगर हॉल में एक घंटे तक जूठे बर्तन साफ़ करने होंगे और सफाई करनी होगी।
  2. पाठ: सेवा पूरी करने के बाद उन्हें सुखमनी साहिब और जपजी साहिब का पाठ करना होगा।
  3. अरदास: अंत में 500 रुपये का कड़ाह प्रसाद चढ़ाकर भूल बख्शाने की अरदास करनी होगी।

विर्सा सिंह वालतोहा का वनवास ख़त्म

आज का दिन अकाली दल के फायरब्रांड नेता विर्सा सिंह वालतोहा (Virsa Singh Valtoha) के लिए भी राहत लेकर आया। आपको याद होगा कि जत्थेदारों पर सवाल उठाने के चलते उन्हें पार्टी से 10 साल के लिए निकाल दिया गया था।

आज वालतोहा भी अकाल तख्त पर पेश हुए और अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगी। सिंह साहिबान ने उनका स्पष्टीकरण स्वीकार करते हुए उन पर लगा 10 साल का बैन तुरंत प्रभाव से हटा दिया है। यानी उनकी घर वापसी हो गई है। लेकिन उन्हें भी 'तनख्वाह' मिली है:

  • उन्हें सुल्तानपुर लोधी, दमदमा साहिब और आनंदपुर साहिब जाकर लंगर सेवा करनी होगी और बाणी का पाठ करना होगा।

यूनिवर्सिटी के वीसी को भी सेवा

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (GNDU) के वाइस चांसलर, डॉ. करमजीत सिंह, भी सिख इतिहास से जुड़ी किताबों में गलत तथ्यों के मामले में पेश हुए। उन्होंने अपनी गलती मानी और उन्हें भी धार्मिक सेवा लगाकर माफ़ कर दिया गया।

क्यों अहम है आज का फैसला?

यह घटना बताती है कि अकाल तख्त साहिब सर्वोच्च है। वहां कोई मंत्री हो, वीसी हो या खुद पूर्व जत्थेदार—मर्यादा और पंथ के आगे सब बराबर हैं। 10 साल पुराने जख्म पर आज मरहम लगा है। संगत उम्मीद कर रही है कि इस फैसले से पंथ में जो दूरियां आई थीं, अब वो कम होंगी और एकता लौटेगी।

--Advertisement--