Har Chhath Vrat: जानें महुआ के दातुन और पत्तों का महत्व और व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

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Newsindia live,Digital Desk: Har Chhath Vrat: हिन्दू धर्म में संतान की लंबी आयु, कुशलता और समृद्धि के लिए कई व्रत किए जाते हैं, जिनमें हलषष्ठी का व्रत प्रमुख है। इसे हरछठ, ललई छठ या हल छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भगवान कृष्ण के बड़े भाई, शेषनाग के अवतार, बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल था, इसी कारण इस व्रत का नाम हलषष्ठी पड़ा। यह व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है।

इस व्रत के नियम थोड़े कठिन होते हैं। इस दिन जमीन पर हल चलाना या जुताई करना पूरी तरह से वर्जित होता है, इसलिए इस दिन खेतों में कोई काम नहीं किया जाता। व्रत रखने वाली महिलाएं भी इस दिन किसी प्रकार की जुती हुई चीज का सेवन नहीं करती हैं। वे तालाब में उगने वाले पसही के चावल खाकर अपना व्रत रखती हैं। एक और महत्वपूर्ण नियम यह है कि इस दिन गाय के दूध या दही का सेवन करना पाप माना जाता है। भैंस के दूध और घी का उपयोग किया जा सकता है। पूजा के लिए महुआ के दातुन और पत्तों का इस्तेमाल करना शुभ माना जाता है।

व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। वह गर्भवती थी और उसका दूध-दही बेचने का समय हो गया था। उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन उसका मन दूध-दही खराब होने की चिंता में लगा था। वह उठी और सिर पर टोकरी रखकर बेचने निकल पड़ी। रास्ते में एक पेड़ के नीचे उसने एक पुत्र को जन्म दिया। थोड़ी देर आराम करने के बाद वह अपने बच्चे को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गाँव में दही बेचने चली गई।

जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन हलषष्ठी थी। ग्वालिन ने अपना दही बेचने के लिए झूठ बोला कि यह भैंस का दही है, ताकि उसका सामान बिक जाए, क्योंकि उस दिन गाय का दूध-दही वर्जित था। उसने पसही के चावल के बारे में भी झूठ बोला। उसके इस झूठ और व्रत के दिन काम करने के पाप के कारण, जब वह वापस लौटी तो उसका बच्चा जीवित नहीं था। वह समझ गई कि यह उसके पापों का फल है। उसने पश्चाताप किया और भविष्य में कभी ऐसा न करने का प्रण लिया। उसके सच्चे पश्चाताप से भगवान प्रसन्न हुए और उसका पुत्र फिर से जीवित हो गया। तभी से यह व्रत अपनी संतान की कुशलता के लिए पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाता है।

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