दादा की प्रॉपर्टी पर पोते का हक? दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, दूर हो गया सबसे बड़ा कन्फ्यूजन
अक्सर हमारे समाज में यह मान लिया जाता है कि दादा-दादी की संपत्ति पर पोते-पोतियों का सीधा अधिकार होता है. कई बार तो परिवार में इसे लेकर विवाद भी खड़े हो जाते हैं. लेकिन क्या कानून भी यही मानता है? इसी सबसे बड़े सवाल पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो संपत्ति के बंटवारे से जुड़े सारे भ्रम दूर कर देगा और आपको इसे जानना ही चाहिए.
कोर्ट ने दो टूक शब्दों में क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण मामले में यह बिल्कुल साफ कर दिया है कि अगर आपके माता-पिता जीवित हैं, तो आप (यानी पोता या पोती) अपने दादा-दादी की संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकते. यह एक सीधी और स्पष्ट लाइन है, जो संपत्ति के अधिकार को लेकर समाज में फैली कई गलतफहमियों को दूर करती है.
क्या था वो मामला जिसने यह फैसला दिलाया?
यह फैसला एक ऐसे ही मामले की सुनवाई के दौरान आया, जहां कृतिका जैन नाम की एक पोती ने अपने दादा की संपत्ति में हिस्सा मांगते हुए अपने ही पिता और चाची के खिलाफ केस कर दिया था. उसका दावा था कि दिल्ली में मौजूद उसके दादा की प्रॉपर्टी में उसे एक-चौथाई हिस्सा मिलना चाहिए. लेकिन हाईकोर्ट ने उसकी इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसका दावा कानूनी रूप से ভিত্তিहीन है.
कानून की नज़र में असली हक़दार कौन? समझिए पूरा गणित
कोर्ट ने यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के आधार पर सुनाया है, जो यह तय करता है कि संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा.
- कौन हैं 'प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी'?: इस कानून के मुताबिक, जब किसी व्यक्ति (जैसे दादाजी) का निधन होता है, तो उनकी खुद की कमाई हुई संपत्ति पर सबसे पहला हक उनके 'प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों' का होता है.
- इस लिस्ट में कौन-कौन शामिल है?: कानून के अनुसार, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में उनकी विधवा (यानी दादी) और उनके सभी बच्चे (यानी आपके पिता/माता और चाचा/बुआ) आते हैं.
- पोते-पोतियों का नंबर कब आता है?: पोते-पोतियों का नंबर इस लिस्ट में तब तक नहीं आता, जब तक उनके अपने माता-पिता जीवित हैं. सरल शब्दों में, जब तक बाप (यानी दादा का बेटा) जिंदा है, तब तक बेटे (यानी पोते) का दादा की खुद की अर्जित संपत्ति में सीधा कोई कानूनी हक नहीं बनता है.
तो अगली बार जब भी संपत्ति के अधिकार की बात हो, तो दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले को जरूर याद रखें. यह नियम परिवारों में संपत्ति को लेकर होने वाले कई विवादों को सुलझाने में मदद कर सकता है और कानूनी स्थिति को बिल्कुल स्पष्ट करता है.
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