GST में बदलाव: आम आदमी को फायदा, पर सरकारी खजाने को लगेगा 85,000 करोड़ का झटका! SBI की रिपोर्ट ने बढ़ाई टेंशन

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा हाल ही में दिए गए उन संकेतों ने, जिनमें उन्होंने GST दरों में बड़ा फेरबदल करने और आम आदमी को राहत देने की बात कही थी, पूरे देश में उम्मीद की एक लहर दौड़ा दी हैं। हर कोई यह सोच कर खुश हैं कि जल्द ही कई ज़रूरी चीजें सस्ती हो सकती हैं। लेकिन, जैसा कि कहते हैं, हर अच्छी चीज की एक कीमत होती हैं। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के आर्थिक अनुसंधान विभाग की एक ताजा रिपोर्ट  इस 'खुशी' के पीछे छिपी एक बड़ी 'चिंता' को उजागर किया है।

एसबीआई रिसर्च की 'इकोरैप' (Ecowrap) नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सरकार GST की दरों में वो बदलाव करती है जिसकी उम्मीद की जा रही हैं, तो इससे भले ही आम उपभोग (Consumption) को बढ़ावा मिले, लेकिन इसकी कीमत सरकारी खजाने को सालाना 85,000 करोड़ रुपये के भारी-भरकम 'राजस्व घाटे' (Revenue Loss) के तौर पर चुकानी पड़ेगी। यह आंकड़ा इतना बड़ा हैं कि इसने सरकार के GST 2.0 सुधारों के मंसूबों पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया हैं।

 

SBI की रिपोर्ट में क्या हैं बड़ी बातें? (GST रीजिग का पूरा हिसाब)

जीएसटी काउंसिल जिस सबसे बड़े बदलाव पर विचार कर रही हैं, वह है टैक्स स्लैब का पुनर्गठन। SBI  इसी संभावित पुनर्गठन के वित्तीय प्रभाव की गणना की हैं।

संभावित बदलाव क्या है?:

  • मौजूदा 5%, 12%, 18% और 28% के कई स्लैब को कम करके तीन नए स्लैब बनाना।
  • यह नए स्लैब 8%, 15% और 30% हो सकते हैं।
  • यानी, मौजूदा 5% स्लैब को खत्म करके कई वस्तुएं 8% में आ जाएंगी, और 12% और 18% के स्लैब को मिलाकर एक 15% का स्टैंडर्ड स्लैब बनाया जाएगा।

SBI की गणना के अनुसार, इसका असर क्या होगा?:

  • अगर 12% और 18% स्लैब में आने वाली वस्तुएं नए 15% स्लैब में चली जाती हैं, तो सरकार को इस एक फैसले से ही लगभग 85,000 करोड़ रुपये के सालाना जीएसटी राजस्व का नुकसान हो सकता है।

आम आदमी के लिए क्या फायदे और नुकसान?

इस बदलाव का आम आदमी की जेब पर मिला-जुला असर पड़ेगा।

  • क्या होगा सस्ता? (18% से 15%): जो वस्तुएं अब 18% के स्लैब में आती हैं, जैसे कि साबुन, टूथपेस्ट, हेयर ऑयल, और बहुत से इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स, वे नए 15% स्लैब में आकर सस्ती हो जाएंगी।
  • क्या होगा महंगा? (12% से 15%): वहीं, जो वस्तुएं अब 12% के स्लैब में हैं, जैसे कि बटर, घी, और कुछ मोबाइल फोन, वे नए 15% स्लैब में आकर महंगी हो जाएंगी।
  • सबसे बड़ा सवाल: असली राहत इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार किन ज़रूरी वस्तुओं को नए 8% स्लैब में रखती है और किन को पूरी तरह से GST से मुक्त करती है, जैसा कि उर्वरक और दवाओं के बारे में कहा जा रहा हैं।

SBI की रिपोर्ट यह भी कहती हैं कि GST कम होने से लोग खर्च करने के लिए ज़्यादा प्रोत्साहित होंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में खपत (Consumption) बढ़ेगी और समग्र रूप से मांग को बढ़ावा मिलेगा।

 

तो सरकार के सामने क्या है चुनौती? (The Big Dilemma)

यह रिपोर्ट सरकार के लिए एक दो-धारी तलवार जैसी हैं।

  • एक तरफ, आम आदमी को महंगाई से राहत देना और 2029 के चुनावों से पहले एक सकारात्मक माहौल बनाना एक बड़ी राजनीतिक प्राथमिकता हैं।
  • दूसरी तरफ, 85,000 करोड़ रुपये का भारी राजस्व घाटा सरकार के खजाने का सारा हिसाब-किताब बिगाड़ सकता हैं। इस घाटे का मतलब होगा कल्याणकारी योजनाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर पर कम खर्च।

पेट्रोल और डीजल को GST में लाने से मिल सकता ਹੈ हल?

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस भारी घाटे की भरपाई का एक रास्ता पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे में लाना हो सकता हैं।

  • कैसे?: पेट्रोल-डीजल पर अभी केंद्र और राज्य मिलकर बहुत ज़्यादा टैक्स वसूलते हैं। अगर इन्हें GST के 28% स्लैब में भी लाया जाता हैं, तो इनकी कीमतें काफी कम हो जाएंगी, लेकिन सरकार को एक बड़ा और स्थायी आय का स्रोत भी मिल जाएगा, जो इस घाटे को पूरा करने में मदद कर सकता हैं। हालांकि, इसके लिए सभी राज्यों की सहमति हासिल करना एक बहुत बड़ी राजनीतिक चुनौती होगी।

अगली जीएसटी काउंसिल की बैठक पर टिकी सबकी निगाहें

अब सबकी निगाहें जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक पर टिकी हैं जहां इस मुद्दे पर आखिरी फैसला लिया जाएगा। सरकार को आम आदमी की राहत और देश के वित्तीय स्वास्थ्य के बीच एक बेहद नाजुक संतुलन बनाना होगा। यह फैसला आने वाले दिनों में भारत की आर्थिक दिशा तय करेगा।

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