Govardhan Puja : जब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर उठाया पूरा पर्वत
News India Live, Digital Desk: दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का त्योहार सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि इसके पीछे एक बहुत गहरी और सुंदर कहानी छिपी है। यह कहानी है भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की, प्रकृति के सम्मान की और देवराज इंद्र के अहंकार को तोड़ने की। आइए, जानते हैं इस कथा के बारे में, जो हमें आज भी बहुत कुछ सिखाती है।
जब ब्रजवासियों ने शुरू की इंद्र की पूजा की तैयारी
एक बार की बात है, ब्रज के सभी लोग बड़े ही धूमधाम से देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे थे। वे तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। बाल कृष्ण ने अपनी मां यशोदा से पूछा, "मैया, आप सब मिलकर किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं?"
मां यशोदा ने उन्हें बताया, "लल्ला, हम देवराज इंद्र की पूजा कर रहे हैं। वे वर्षा के देवता हैं, और जब वे प्रसन्न होते हैं, तो अच्छी बारिश होती है, जिससे हमारे खेतों में अन्न उगता है और हमारी गायों को हरा चारा मिलता है।"
कृष्ण ने दिया प्रकृति का सम्मान करने का संदेश
यह सुनकर नन्हे कान्हा ने बड़ी ही मासूमियत से सवाल किया, "लेकिन मैया, वर्षा करना तो इंद्र का कर्तव्य है। फिर उनकी पूजा क्यों? अगर हमें किसी की पूजा करनी ही है, तो हमें इस गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए। इसी पर्वत से हमारी गायों को चारा मिलता है, यहां के पेड़ों से हमें फल-फूल और लकड़ी मिलती है और यहां के बादलों से वर्षा होती है। असली देवता तो यह गोवर्धन पर्वत है, जो हमारा पालन-पोषण करता है।"
बाल कृष्ण की बातें सुनकर सभी ब्रजवासी सोच में पड़ गए। उन्हें कान्हा की बात सही लगी और उन्होंने इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का फैसला किया। सभी ने मिलकर तरह-तरह के पकवान बनाए, जिसे 'अन्नकूट' कहा गया, और गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना की।
जब इंद्र ने क्रोध में मचाई तबाही
जब देवराज इंद्र ने देखा कि ब्रजवासियों ने उनकी पूजा बंद कर दी है, तो वे क्रोध से भर गए। अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने ब्रज पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। ऐसी भयंकर बारिश हुई कि चारों तरफ पानी ही पानी हो गया, बाढ़ जैसे हालात बन गए और ब्रजवासी डर से कांपने लगे।
कृष्ण ने उंगली पर उठाया गोवर्धन पर्वत
सभी ब्रजवासी अपनी जान बचाने के लिए भगवान कृष्ण के पास पहुंचे। उनकी दशा देखकर भगवान कृष्ण तुरंत गोवर्धन पर्वत के पास गए और देखते ही देखते उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठा) पर पूरे पर्वत को एक छाते की तरह उठा लिया। उन्होंने सभी ब्रजवासियों और उनके पशुओं को उस पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा।
सात दिनों तक लगातार बारिश होती रही, लेकिन भगवान कृष्ण पर्वत को उठाए खड़े रहे और किसी भी ब्रजवासी को एक बूंद भी नहीं छू पाई। यह चमत्कार देखकर इंद्र का अहंकार टूट गया। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी।
तभी से हर साल दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, अन्नकूट का भोग लगाया जाता है और प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त किया जाता है। यह कथा हमें सिखाती है कि हमें हमेशा उन चीजों का सम्मान करना चाहिए जो हमारा पालन-पोषण करती हैं।
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