Gold Price Forecast: सोने की कीमतों पर क्यों मंडरा रहा है मंदी का साया? जानिए निवेशकों को क्या करना चाहिए

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कमोडिटी बाजार, खासकर सोने के निवेशकों के लिए पिछला कुछ समय काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। जो सोना कुछ समय पहले तक महंगाई और वैश्विक अनिश्चितता के कारण आसमान छू रहा था, अब उसकी चमक फीकी पड़ती दिख रही है। सोने की कीमतों में नरमी का रुख बना हुआ है, जिससे खरीदारों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह खरीदारी का सही मौका है, वहीं मौजूदा निवेशक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यह गिरावट कहां तक जाएगी।

इस गिरावट के पीछे का सबसे बड़ा और तात्कालिक कारण दुनिया की दो महाशक्तियों - अमेरिका और रूस के बीच शुरू हुई राजनयिक बातचीत (Diplomatic Talk) को माना जा रहा है। जब भी वैश्विक मंच पर तनाव कम होता है, तो इसका सीधा असर सोने की कीमतों पर पड़ता है। लेकिन कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं है। कई अन्य वैश्विक कारक भी हैं जो मिलकर सोने की चाल तय कर रहे हैं। आइए, इस पूरे परिदृश्य को विस्तार से समझते हैं।

 

क्यों गिर रहा है सोने का भाव? समझिए 'सेफ हेवन' का पूरा कॉन्सेप्ट

सोने को सिर्फ एक पीली धातु या गहना समझना एक भूल होगी। वित्तीय दुनिया में, सोना एक 'सेफ हेवन' (Safe Haven) यानी 'सुरक्षित पनाहगाह' माना जाता है। इसका मतलब है कि जब भी दुनिया में कोई बड़ा संकट आता है - जैसे युद्ध, आर्थिक मंदी, या कोई महामारी - तो दुनिया भर के निवेशक शेयर बाजार जैसे जोखिम भरे विकल्पों से अपना पैसा निकालकर सोने में लगा देते हैं। उन्हें विश्वास होता है कि संकट के समय में सोने की कीमत स्थिर रहेगी या बढ़ेगी।

लेकिन जब स्थिति इसके विपरीत होती है, यानी जब संकट के बादल छंटने लगते हैं, दुश्मन देश बातचीत की मेज पर आ जाते हैं, और अर्थव्यवस्था में स्थिरता के संकेत मिलते हैं, तो निवेशक सोने से पैसा निकालकर वापस शेयर बाजार और अन्य विकल्पों में लगाने लगते हैं जहां उन्हें बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद होती है। इससे सोने की मांग घटती है और उसकी कीमतें गिरने लगती हैं।

 

अमेरिका और रूस की बातचीत का सोने पर सीधा असर

अमेरिका और रूस के बीच किसी भी तरह की सकारात्मक राजनयिक बातचीत को वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए एक अच्छा संकेत माना जाता है। जब इन दो महाशक्तियों के बीच तनाव कम होता है, तो दुनिया पर मंडरा रहा भू-राजनीतिक जोखिम (Geopolitical Risk) भी कम हो जाता है।

  • कम हुआ डर का माहौल: इस बातचीत से बाजार का 'डर का माहौल' कम हुआ है, जिससे 'सेफ हेवन' के रूप में सोने की अपील कमजोर पड़ गई है।
  • निवेशकों का बदला रुख: निवेशक अब जोखिम लेने के लिए अधिक तैयार हैं, इसलिए वे सोने को बेचकर इक्विटी जैसे दूसरे एसेट्स में निवेश कर रहे हैं।

इसी वजह से, जैसे ही इन दोनों देशों के बीच बातचीत की खबरें आईं, कमोडिटी बाजार में सोने की कीमतों पर तत्काल दबाव देखने को मिला।

 

सिर्फ रूस-अमेरिका ही नहीं, ये 4 फैक्टर भी तय कर रहे हैं सोने की चाल

सोने की कीमत सिर्फ एक कारण से तय नहीं होती। निवेशकों को इन अन्य महत्वपूर्ण कारकों पर भी पैनी नजर रखनी चाहिए:

1. अमेरिकी डॉलर की बादशाहत (Dominance of the US Dollar)
सोने और अमेरिकी डॉलर के बीच अक्सर उल्टा रिश्ता होता है। जब डॉलर इंडेक्स (DXY) मजबूत होता है, तो सोने की कीमतें गिरती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सोने का कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर में होता है, और मजबूत डॉलर के कारण अन्य मुद्रा वाले देशों के लिए सोना खरीदना महंगा हो जाता है, जिससे मांग घट जाती है।

2. ब्याज दरों का 'ब्रह्मास्त्र' (The Weapon of Interest Rates)
अमेरिका का केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve), जब ब्याज दरें बढ़ाता है, तो इसका सोने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। क्योंकि सोने में निवेश पर कोई ब्याज नहीं मिलता। ऐसे में, जब निवेशकों को बैंक या बॉन्ड्स में सुरक्षित और अच्छा ब्याज मिलने लगता , तो वे सोना बेचकर वहां पैसा लगाना पसंद करते हैं।

3. महंगाई के आंकड़े (Inflation Data)
सोने को पारंपरिक रूप से महंगाई के खिलाफ एक बचाव (Hedge against Inflation) माना जाता है। जब महंगाई बढ़ती , तो मुद्रा की कीमत गिरती है और लोग अपने पैसे की वैल्यू को बचाने के लिए सोना खरीदते हैं, जिससे उसकी मांग बढ़ती है। अगर महंगाई के आंकड़े नियंत्रण में आते दिखते हैं, तो यह भी सोने के लिए एक नकारात्मक संकेत होता ।

4. सेंट्रल बैंकों की खरीदारी (Central Bank Buying)
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक (जैसे भारत का RBI, चीन का केंद्रीय बैंक) अपने विदेशी मुद्रा भंडार को सुरक्षित रखने के लिए सोने की भारी खरीदारी करते हैं। अगर ये बैंक अपनी खरीदारी कम कर देते , तो इससे भी सोने की कीमतों पर दबाव बन सकता ।

 

तो निवेशकों को अब क्या करना चाहिए?

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि छोटी अवधि में सोने की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है, खासकर अगर अमेरिका-रूस बातचीत से कोई सकारात्मक परिणाम निकलता है और अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को ऊंचा बनाए रखता ।

  • लंबी अवधि के निवेशक: जो लोग लंबी अवधि (5-10 साल) के लिए निवेश कर रहे , उन्हें घबराना नहीं चाहिए। सोने को हमेशा अपने पोर्टफोलियो का एक छोटा हिस्सा (5-10%) बनाए रखना एक अच्छी रणनीति मानी जाती ।
  • खरीदारी का मौका?: यह गिरावट उन लोगों के लिए खरीदारी का एक अच्छा मौका हो सकता है जो त्योहारी या शादी-ब्याह के लिए सोना खरीदना चाहते ।
  • SIP का रास्ता: एकमुश्त निवेश करने के बजाय, निवेशक गोल्ड SIP (Systematic Investment Plan) या गोल्ड ETF के जरिए धीरे-धीरे और नियमित रूप से निवेश करने पर विचार कर सकते , ताकि उन्हें कीमतों के उतार-चढ़ाव का औसत लाभ मिल सके।

कुल मिलाकर, अगले कुछ हफ्ते कमोडिटी बाजार, खासकर सोने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं। निवेशकों को इन सभी वैश्विक कारकों पर बारीकी से नजर बनाए रखनी चाहिए और कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य करना चाहिए।

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