Ghatshila by-Election : सोरेन Vs सोरेन की जंग में किसकी लगेगी नैया पार? JMM के लिए साख तो BJP के लिए प्रतिष्ठा का सवाल
News India Live, Digital Desk: झारखंड की राजनीति का पारा इन दिनों घाटशिला विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर चढ़ा हुआ है। यह उपचुनाव सिर्फ एक खाली सीट को भरने की कवायद नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के लिए पहली बड़ी 'अग्निपरीक्षा' और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए साख की लड़ाई बन गया है। JMM के विधायक रामदास सोरेन के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर अब 'सोरेन' बनाम 'सोरेन' की दिलचस्प जंग देखने को मिलेगी।
एक तरफ जहां JMM ने दिवंगत विधायक रामदास सोरेन के बेटे सोमेश सोरेन पर दांव लगाकर सहानुभूति और विरासत की राजनीति को आगे बढ़ाया है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने प्रोफेसर डॉ. बाबूलाल सोरेन को मैदान में उतारकर JMM के इस अभेद्य किले में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है।
JMM का 'विरासत' और 'सहानुभूति' का दांव
घाटशिला विधानसभा सीट दशकों से JMM का गढ़ रही है। पूर्व विधायक रामदास सोरेन यहां के एक बड़े और सम्मानित नेता थे। उनके निधन के बाद, JMM ने उनके बेटे सोमेश सोरेन को टिकट देकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं।
- सहानुभूति की लहर: पार्टी को उम्मीद है कि रामदास सोरेन के निधन के बाद क्षेत्र की जनता में जो सहानुभूति की लहर है, उसका सीधा फायदा उनके बेटे को मिलेगा।
- विरासत की राजनीति: सोमेश सोरेन के सामने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती और जिम्मेदारी है, जिसे पार्टी भुनाने की पूरी कोशिश करेगी।
BJP ने चला 'शिक्षित' और 'नया चेहरा' कार्ड
BJP इस बार JMM के इस गढ़ को किसी भी हाल में जीतना चाहती है। इसीलिए पार्टी ने एक साफ-सुथरी और शिक्षित छवि वाले प्रोफेसर डॉ. बाबूलाल सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है। BJP, JMM की विरासत और सहानुभूति की राजनीति के खिलाफ विकास और बदलाव के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी में है। डॉ. बाबूलाल सोरेन क्षेत्र में काफी समय से सक्रिय हैं और उनकी अपनी एक पकड़ भी है।
क्यों है यह चंपई सोरेन के लिए 'अग्निपरीक्षा'?
यह उपचुनाव सिर्फ दो उम्मीदवारों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के नेतृत्व पर भी पड़ेगा। हेमंत सोरेन के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले चंपई सोरेन के लिए यह पहली बड़ी चुनावी चुनौती है।
- नेतृत्व पर मुहर: अगर JMM यह सीट जीतती है, तो इसे चंपई सोरेन के नेतृत्व पर जनता की मुहर के तौर पर देखा जाएगा।
- सरकार की प्रतिष्ठा: अपनी ही गढ़ की सीट को बचाना सत्ताधारी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होता है। JMM और खुद मुख्यमंत्री चंपई सोरेन इस सीट को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे।
कुल मिलाकर, घाटशिला का यह उपचुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है। एक तरफ पिता की विरासत और सहानुभूति की लहर है, तो दूसरी तरफ बदलाव और एक नए चेहरे की उम्मीद। अब देखना यह होगा कि घाटशिला की जनता विरासत को चुनती है या बदलाव पर मुहर लगाती है।
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