Garuda Purana : किसकी मुखाग्नि से मिलेगी अविवाहित मृतक को मुक्ति? जानें क्या कहते हैं शास्त्र
News India Live, Digital Desk : हिंदू धर्म में गरुड़ पुराण का स्थान बहुत ही खास माना गया है। यह वो ग्रंथ है जो हमें जीवन जीने का तरीका तो बताता ही है, साथ ही मृत्यु के बाद के रहस्यों से भी पर्दा उठाता है। वैसे तो हम सभी यही प्रार्थना करते हैं कि किसी माता-पिता को अपने जीते-जी अपनी संतान का वियोग न सहना पड़े। दुनिया में इससे बड़ा दुःख शायद ही कोई दूसरा हो जब एक पिता को अपने जवान बेटे की अर्थी उठानी पड़े।
लेकिन, नियति पर किसी का जोर नहीं चलता। कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं जब परिवार को इस भारी मन के साथ भी धार्मिक रीति-रिवाजों को निभाना पड़ता है। एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में उठता है— "अगर किसी अविवाहित बेटे (Unmarried Son) की मौत हो जाए, तो उसका श्राद्ध या अंतिम संस्कार करने का अधिकार किसे है?"
आम तौर पर हम देखते हैं कि पिता का अंतिम संस्कार बेटा करता है। लेकिन जब स्थिति उल्टी हो, तो नियम क्या कहते हैं? आइये, गरुड़ पुराण के अनुसार इस उलझन को सुलझाते हैं।
1. सबसे पहला अधिकार 'पिता' का है
गरुड़ पुराण के अनुसार, अगर किसी अविवाहित युवक की मृत्यु हो जाती है, तो उसके अंतिम संस्कार और श्राद्ध कर्म (पिंड दान) करने का सबसे पहला अधिकार उसके पिता का होता है। हालांकि, एक पिता के लिए यह दुनिया का सबसे कठिन काम है, लेकिन शास्त्रों के मुताबिक़, पिता के हाथों ही बेटे की आत्मा की शांति के लिए क्रिया-कर्म किया जाना उत्तम माना गया है।
2. अगर पिता समर्थ न हों तो?
कई बार ऐसा होता है कि पिता बहुत बुजुर्ग हैं, बीमार हैं या वे इस असहनीय दुःख की वजह से विधि-विधान करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसी स्थिति में गरुड़ पुराण मृतक के सगे भाई (Brother) को यह अधिकार देता है। अगर अविवाहित मृतक का कोई सगा भाई है, तो वह पिता की जगह मुखाग्नि दे सकता है और श्राद्ध कर सकता है।
3. अगर भाई भी न हो?
शास्त्र हर स्थिति का समाधान बताते हैं। अगर मृतक का कोई भाई नहीं है, तो परिवार का कोई अन्य पुरुष सदस्य जैसे चाचा का लड़का या भतीजा भी यह जिम्मेदारी निभा सकता है। मकसद यह है कि विधि-विधान सही से हों ताकि जाने वाली आत्मा को 'प्रेत योनि' से मुक्ति मिल सके और वो अपनी आगे की यात्रा कर सके।
क्यों जरूरी है पिंड दान?
गरुड़ पुराण साफ कहता है कि चाहे इंसान विवाहित हो या अविवाहित, मृत्यु के बाद पिंड दान होना बेहद जरूरी है। इसके बिना आत्मा इस लोक और परलोक के बीच भटकती रहती है। इसलिए, भारी मन से ही सही, लेकिन परिजनों को यह कर्तव्य निभाना ही पड़ता है।
संक्षेप में:
नियम यही कहता है कि अविवाहित बेटे के लिए पिता ही मुख्य होते हैं। लेकिन समय और हालात को देखते हुए भाई-बंधु भी यह फर्ज निभा सकते हैं। भगवान हम सबको ऐसी दुःखद घड़ी से बचाकर रखे।
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