Former Chief Minister : शिबू सोरेन को एक IAS अधिकारी ने बचाया था मुठभेड़ से, आत्मसमर्पण की अनसुनी कहानी
News India Live, Digital Desk: Former Chief Minister : झारखंड के दिशोम गुरु शिबू सोरेन, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री हैं, एक समय अपने राजनीतिक करियर के सबसे गंभीर मोड़ पर थे, जब एक IAS अधिकारी ने उन्हें एक कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने से बचाया था। यह घटना और उनके बाद का आत्मसमर्पण आज भी भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण प्रसंग के रूप में याद किया जाता है। उस समय शिबू सोरेन कई हत्याओं के आरोप में फरार चल रहे थे, और उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी था।
शिबू सोरेन, जिनका नाम संतन सिंह हत्या कांड, जामिया कांड, और टुंडी नरसंहार जैसे मामलों में आया था, वे लंबे समय से सीबीआई और झारखंड पुलिस के रडार पर थे। इन मामलों के सिलसिले में निचली अदालत ने उनके खिलाफ कई बार गिरफ्तारी वारंट जारी किया था, लेकिन वे अदालत में पेश नहीं हो रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक अवमानना याचिका पर उनके खिलाफ सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि उन्हें पुलिस गिरफ्तार करे और अदालत में पेश करे। इससे शिबू सोरेन पर गिरफ्तारी का भारी दबाव था।
यह वो दौर था जब तत्कालीन गृह सचिव एम.एल. मैत्रेयी झारखंड के बड़े अफसर माने जाते थे। सोरेन की गिरफ्तारी के लिए पुलिस हर मुमकिन कोशिश कर रही थी और कई मीडिया रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया कि एक कथित "फर्जी मुठभेड़" का खतरा उन पर मंडरा रहा था। ऐसा ही एक अवसर 1980 के दशक के उत्तरार्ध में आया जब मैत्रेयी को पता चला कि शिबू सोरेन उस समय जमशेदपुर में हैं। उन्होंने जमशेदपुर पुलिस को यह जानकारी दी, लेकिन सोरेन को "गैर-कानूनी" तरीके से निपटाने के बजाय उन्हें आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करने का रास्ता चुना।
मैत्रेयी ने रांची से एक वरिष्ठ आदिवासी अधिकारी, आर.पी. शर्मा, को जमशेदपुर भेजा। शर्मा शिबू सोरेन के विश्वासपात्रों में से थे। उन्होंने सोरेन को बताया कि आत्मसमर्पण ही एकमात्र सुरक्षित रास्ता है और उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं होगा। आर.पी. शर्मा की मध्यस्थता और मैत्रेयी के स्पष्ट निर्देशों के बाद, शिबू सोरेन ने 9 जनवरी 1988 को दुमका में जिला एवं सत्र न्यायाधीश शिवनारायण द्विवेदी की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया। इस आत्मसमर्पण के साथ ही राजनीतिक और कानूनी गलियारों में एक लंबी चली अटकलबाजी का अंत हुआ।
इस आत्मसमर्पण ने शिबू सोरेन को न सिर्फ संभावित खतरे से बचाया, बल्कि उनके राजनीतिक करियर को भी नया मोड़ दिया। उन्होंने जेल में रहते हुए भी अपना प्रभाव बनाए रखा और बाद में वे झारखंड के मुख्यमंत्री बने, जिसे भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक ईमानदार अधिकारी द्वारा दिखाई गई विवेक और नियमों के पालन की एक मिसाल के रूप में देखा जाता है।
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