Form of Mahadev: शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग का भेद जहाँ से निकला सृष्टि का मूल

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News India Live, Digital Desk: भगवान शिव के दो प्रमुख रूपों, शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग को लेकर अक्सर लोगों में जिज्ञासा और थोड़ी भ्रम की स्थिति बनी रहती है। वैसे तो ये दोनों ही भगवान शिव की सर्वोच्च सत्ता और उनकी असीम ऊर्जा का प्रतीक हैं, लेकिन इनके अर्थ, उत्पत्ति और महत्व में कुछ सूक्ष्म अंतर हैं जिन्हें समझना आवश्यक है।

सबसे पहले बात करते हैं शिवलिंग की। शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप को दर्शाता है, यानी वह रूप जिसका न आदि है न अंत। यह सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार तीनों का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग को कहीं भी स्थापित किया जा सकता है और इसकी पूजा भक्ति भाव से कहीं भी की जा सकती है, चाहे वह घर का मंदिर हो, सार्वजनिक स्थान हो या कोई गुफा। यह मिट्टी, पत्थर, धातु, पारा या स्फटिक जैसे विभिन्न पदार्थों से बनाया जा सकता है। यह असल में भगवान शिव के अव्यक्त स्वरूप का प्रतीक है, जिसके जरिए भक्त उनके असीम गुणों का ध्यान करते हैं।

अब आते हैं ज्योतिर्लिंग पर। ज्योतिर्लिंग 'प्रकाश स्तंभ' या 'अग्नि स्तंभ' का प्रतिनिधित्व करता है। यह साधारण शिवलिंग से कई गुना अधिक विशेष और पूज्यनीय है। हिंदू धर्म में 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है, जो पूरे भारत में फैले हुए हैं और शिव भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये स्वयं प्रकट हुए माने जाते हैं, अर्थात् ये मानव द्वारा स्थापित नहीं किए गए बल्कि दिव्य शक्ति से स्वयं धरती पर उद्भूत हुए। इन्हें अत्यधिक शक्तिशाली और ऊर्जावान माना जाता है।

इन ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा है जो शिव पुराण में वर्णित है। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और पालक विष्णु के बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि दोनों में से कौन श्रेष्ठ है। जब उनका विवाद बढ़ गया, तब भगवान शिव एक विशाल और अंतहीन ज्योतिर्मय (प्रकाशमय) लिंग के रूप में प्रकट हुए। इस अग्निस्तंभ का न कोई आदि था न कोई अंत। शिव ने दोनों देवताओं से इसके छोर ढूंढने को कहा। ब्रह्मा ने हंस का रूप लेकर ऊपरी सिरा खोजने का प्रयास किया, जबकि विष्णु वराह रूप धारण कर निचले सिरे की खोज में गए। हजार वर्षों तक यात्रा करने के बाद भी वे दोनों इसका न तो आदि ढूंढ पाए और न ही अंत। तब उन्होंने शिव के सर्वोच्च स्वरूप को स्वीकार किया। माना जाता है कि इसी अग्निस्तंभ के प्रतीक के रूप में पृथ्वी पर 12 ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए, जो भगवान शिव की सर्वोच्चता और अनादि-अनंत स्वरूप को दर्शाते हैं। ये बारह स्थान आज भी भगवान शिव की दिव्यता और उनके स्वयं प्रकट होने का प्रमाण माने जाते हैं।

संक्षेप में, हर शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है, लेकिन हर शिवलिंग ज्योतिर्लिंग नहीं होता। ज्योतिर्लिंग शिव का स्वयं प्रकाशित, दिव्य और अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है जो उनके लौकिक उद्भव से जुड़ा है, जबकि शिवलिंग एक सामान्य प्रतीकात्मक प्रस्तुति है। दोनों की पूजा हमें भगवान शिव की कृपा दिलाती है, बस उनका पौराणिक आधार और ऊर्जा का स्तर भिन्न होता है।

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