1947 में आज़ादी के बाद भी भारत में रह गए थे अंग्रेज़, जानिए क्यों और कहाँ?
Britishers In India During Independence: 15 अगस्त 1947 यह तारीख सुनते ही हमारे दिमाग में आता है - आज़ादी, तिरंगा, जश्न और अंग्रेज़ों की भारत से हमेशा के लिए विदाई। हमने इतिहास की किताबों में यही पढ़ा है कि इस दिन 200 साल की गुलामी खत्म हुई और अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है? सच तो यह है कि उस दिन सारे अंग्रेज़ भारत छोड़कर नहीं गए थे। हज़ारों, बल्कि लाखों अंग्रेज़ और एंग्लो-इंडियन 1947 के बाद भी भारत में ही रह रहे थे।
तो फिर 1947 के बाद भारत में कौन रुका था?
यह समझना बहुत ज़रूरी है कि आज़ादी मिलना एक कानूनी प्रक्रिया थी, यह कोई 'सब सामान उठाओ और निकल जाओ' जैसा फरमान नहीं था। उस समय भारत में कई तरह के ब्रिटिश नागरिक रह रहे थे:
- एंग्लो-इंडियन समुदाय: ये वो लोग थे जिनके माता-पिता में से एक भारतीय और एक ब्रिटिश मूल का था। भारत ही उनकी जन्मभूमि थी, उनकी संस्कृति मिली-जुली थी। वे कहाँ जाते? उनके लिए तो भारत ही उनका घर था। आज़ादी के बाद बड़ी संख्या में एंग्लो-इंडियन यहीं भारत में ही रहे।
- सरकारी अधिकारी और कर्मचारी: 200 साल का राज चलाना एक बहुत बड़ा सिस्टम था। जब भारत आज़ाद हुआ, तो इस पूरे सिस्टम को भारतीयों को सौंपने में समय लगना था। इसलिए, कई ब्रिटिश अधिकारी और कर्मचारी आज़ादी के बाद भी महीनों तक भारत में ही रुके, ताकि सत्ता का हस्तांतरण (Transfer of Power) ठीक से हो सके।
- व्यापारी और पेशेवर: कई अंग्रेज़ों के भारत में बड़े-बड़े कारोबार थे, चाय के बागान थे, फैक्टरियां थीं। वे रातों-रात अपना सब कुछ छोड़कर नहीं जा सकते थे। वे यहीं रहे और अपना काम जारी रखा।
- ब्रिटिश सैनिक: भारतीय सेना में बड़ी संख्या में ब्रिटिश सैनिक और अफसर थे। उनकी वापसी की प्रक्रिया भी एक दिन में पूरी नहीं हो सकती थी। बटालियन की आखिरी टुकड़ी के भारत से जाने में लगभग 6 महीने का समय लग गया था। ब्रिटिश सेना की आखिरी टुकड़ी फरवरी 1948 में मुंबई के 'गेटवे ऑफ इंडिया' से इंग्लैंड के लिए रवाना हुई थी।
कितने अंग्रेज़ थे उस समय भारत में?
आंकड़े थोड़े अलग-अलग हैं, लेकिन माना जाता है कि 1947 के समय भारत में ब्रिटिश नागरिकों और एंग्लो-इंडियन समुदाय को मिलाकर संख्या लाखों में थी। ये लोग सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटे कस्बों, हिल स्टेशनों और बागानों वाले इलाकों में भी रहते थे।
तो अगली बार जब कोई कहे कि 1947 में सारे अंग्रेज़ चले गए, तो आप उन्हें बता सकते हैं कि आज़ादी एक दिन की घटना नहीं, बल्कि एक लंबी और दिलचस्प प्रक्रिया थी, जिसमें कई अनसुनी कहानियां छिपी हुई हैं।
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