डिजिटल प्राइवेसी खतरे में! बात करते समय मोबाइल फ़ोन पर दिखने वाले विज्ञापनों का सच क्या है?
बात यह है कि जब भी हम किसी नए मोबाइल, जूते या यात्रा पैकेज के बारे में बात करते हैं, तो अचानक हमारे मोबाइल पर उसी से जुड़े विज्ञापन दिखाई देने लगते हैं। इसे देखते हुए, विशेषज्ञों का कहना है कि यह महज़ एक संयोग नहीं, बल्कि डेटा ट्रैकिंग, ब्राउज़िंग हिस्ट्री और ऐप्स के आधार पर रुचि-आधारित लक्षित विज्ञापन भी हो सकते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या हमारा फ़ोन हमारी बातचीत सुन रहा है या हमारी निजता खतरे में है?

संक्षेप में, जब हम अपने मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं, तो सोशल मीडिया, ब्राउज़र और सर्च इंजन जैसे एप्लिकेशन हमारे इस्तेमाल के पैटर्न, सर्च हिस्ट्री, क्लिक और पसंद-नापसंद रिकॉर्ड करते हैं। इसके अलावा, हम कौन सी वेबसाइट देखते हैं, क्या सर्च करते हैं, किस पर ज़्यादा समय बिताते हैं, यह सारा डेटा कंपनियों तक पहुँचता है।

गूगल और मेटा जैसी बड़ी कंपनियाँ इस डेटा का विश्लेषण करती हैं और फिर इस जानकारी के आधार पर लक्षित विज्ञापन दिखाती हैं। अगर आपने कुछ खोजा या उसके बारे में बात की है, तो सिस्टम समझ जाता है कि आपकी उस चीज़ में रुचि है। इसलिए, आपको उसी उत्पाद या उससे जुड़ी चीज़ों के विज्ञापन बार-बार दिखाई देने लगते हैं।

कई ऐप्स इंस्टॉल करते समय माइक्रोफ़ोन, कैमरा और लोकेशन की अनुमति मांगते हैं। अगर आप "अनुमति दें" पर क्लिक करते हैं, तो ये ऐप्स बैकग्राउंड में आपके फ़ोन के सेंसर से डेटा इकट्ठा कर सकते हैं। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वे हमेशा आपकी बातें रिकॉर्ड करते रहते हैं, लेकिन कुछ ऐप्स "कीवर्ड डिटेक्शन" के लिए सक्रिय हो सकते हैं। संक्षेप में, वे विशिष्ट शब्दों या वाक्यांशों को पकड़ सकते हैं। यही कारण है कि अक्सर ऐसा लगता है कि आपका फ़ोन "आपकी बात सुन रहा है।"

गूगल असिस्टेंट, सिरी या एलेक्सा जैसे वॉइस असिस्टेंट तब तक सक्रिय नहीं होते जब तक आप "हे गूगल" या "हे सिरी" जैसे ट्रिगर शब्द नहीं कहते। हालाँकि, जब ये चालू होते हैं, तो आपकी आवाज़ रिकॉर्ड की जाती है और सर्वर पर भेजी जाती है ताकि वे उचित प्रतिक्रिया दे सकें। ये 'रिकॉर्डिंग' अक्सर डेटा विश्लेषण के लिए भी सेव की जाती हैं, जिससे उन्हें आपकी प्राथमिकताओं और ज़रूरतों को समझने में मदद मिलती है।

दूसरे शब्दों में, आपका फ़ोन आपकी हर ऑनलाइन गतिविधि पर नज़र रखता है। आप किन विषयों पर सर्च करते हैं, किन वेबसाइटों पर सबसे ज़्यादा जाते हैं, कौन से वीडियो देखते हैं और किन उत्पादों पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। इन सब पर नज़र रखकर, एल्गोरिथम अनुमान लगाता है कि आपको आगे क्या दिखाना है। इसलिए जब आप किसी चीज़ पर चर्चा करते हैं और फिर उसके विज्ञापन देखते हैं, तो यह आपके डिजिटल व्यवहार का नतीजा होता है।

अगर आप नहीं चाहते कि आपकी बातचीत या डेटा कंपनियों तक पहुँचे, तो आप कुछ आसान कदम उठा सकते हैं। ऐसा करने के लिए, अपने फ़ोन की सेटिंग्स → प्राइवेसी → परमिशन में जाएँ और देखें कि किन ऐप्स को आपके माइक्रोफ़ोन या कैमरे का एक्सेस है, और जिनकी आपको ज़रूरत नहीं है, उनसे परमिशन हटा दें। आप Google या Facebook की प्राइवेसी सेटिंग्स में जाकर डेटा कलेक्शन की सीमा तय कर सकते हैं। अगर आप वॉइस असिस्टेंट का इस्तेमाल नहीं करते हैं, तो उसे बंद कर दें।
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