Diesel Price : आपकी जेब पर पड़ रहा भारी बोझ ,जानें पेट्रोल-डीजल पर GST न लगने का असली सच

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News India Live, Digital Desk: Diesel Price : मालूम हो कि जीएसटी के नए रेट्स आज यानी 22 सितंबर 2025 से देशभर में लागू हो गए हैं. इससे कई चीज़ें सस्ती हुई हैं और लोगों को त्योहारों से पहले थोड़ी राहत मिली है. वहीं कुछ वस्तुओं पर अब शून्य टैक्स वसूला जाएगा. नए ‘जीएसटी 2.0’ (GST 2.0) रिफॉर्म्स के तहत सरकार ने टैक्स स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव किए हैं, जिससे देशभर में अब मुख्य रूप से 5% और 18% के दो रेट स्लैब लागू होंगे. इसका सीधा फायदा आम लोगों को मिलेगा. किचन का सामान, पर्सनल केयर उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और दवाएँ तक सस्ती हुई हैं. लेकिन, एक सवाल अब भी दिमाग में घूम रहा है कि पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है? जब रोज़मर्रा की इतनी सारी चीज़ें सस्ती हो गईं, तो इन दो सबसे ज़रूरी ईंधन को इस सूची से क्यों दूर रखा गया?

चलिए, जानते हैं आखिर क्या है इसके पीछे की असली वजह:

जीएसटी से बाहर क्यों हैं पेट्रोल और डीजल, ये हैं 3 बड़े कारण

सबसे बड़ा कारण है केंद्र और राज्य सरकारों के लिए राजस्व का मसला. पेट्रोलियम उत्पादों से सरकारें सालाना 8 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमाई करती हैं. अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में शामिल कर लिया जाता है, तो केंद्र और राज्यों को मिलने वाले इस भारी-भरकम राजस्व (आय) में बड़ी गिरावट आएगी. राज्यों की कुल आय का करीब 25-30% हिस्सा इन पर लगने वाले टैक्स से ही आता है.

  1. सरकार के राजस्व का बड़ा स्रोत: ईंधन पर टैक्स लगाना केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया रहा है. राज्य सरकारें इस पर मूल्य वर्धित कर (VAT) और केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क (Excise Duty) वसूलती हैं. ये टैक्स कुल खुदरा मूल्य का 50% से भी ज़्यादा होते हैं. अगर इन्हें जीएसटी के सबसे ऊँचे स्लैब (28%) में भी रखा जाता है, तो भी अभी की तुलना में सरकार को होने वाली आय में काफी कमी आएगी. अगर दिल्ली में 28% जीएसटी लगता है तो पेट्रोल ₹70 प्रति लीटर तक आ सकता है.
  2. राज्यों का विरोध और वित्तीय आज़ादी: कई राज्य सरकारों को यह डर है कि जीएसटी में आने से उनकी आमदनी घट जाएगी. इसके साथ ही, वे अपनी वित्तीय स्वायत्तता (आज़ादी) खोना नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि जीएसटी के तहत आने से वे अपनी ज़रूरतों के हिसाब से टैक्स लगाने की छूट खो देंगे, जैसा कि वे अभी वैट (VAT) के ज़रिए कर पाते हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी साफ बताया है कि यह निर्णय राज्यों द्वारा जीएसटी काउंसिल में लिया जाना है, और राज्य इसके लिए अभी तक सहमत नहीं हुए हैं.
  3. जीएसटी काउंसिल की सहमति: जीएसटी में पेट्रोल और डीजल को शामिल करने के लिए जीएसटी काउंसिल में सभी राज्यों का सहमत होना बेहद ज़रूरी है. चूंकि सभी को राजस्व घाटे का डर है, इसलिए सभी राज्यों की सहमति मिलना फिलहाल एक बड़ी चुनौती है.

अभी पेट्रोल-डीजल पर कैसे लगता है टैक्स?

आज भी पेट्रोल और डीजल पर मुख्य रूप से दो तरह के टैक्स लगते हैं:

  • केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty): यह केंद्र सरकार लगाती है.
  • राज्य वैट (State VAT): यह हर राज्य अपनी ज़रूरतों और कीमतों के हिसाब से तय करता है. यही कारण है कि देश के अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इतना फर्क होता है. इसके अलावा डीलर का कमीशन भी इसमें शामिल होता है.

अगर इसे जीएसटी में लाया जाए तो यह मौजूदा एक्साइज ड्यूटी और वैट की जगह ले लेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन्हें जीएसटी के 28% वाले सबसे ऊंचे स्लैब में भी रखा जाए, तब भी ग्राहकों को मौजूदा दरों से कम कीमत पर पेट्रोल-डीजल मिलेगा, लेकिन सरकारों को भारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा.

CBIC के चेयरमैन संजय अग्रवाल ने भी साफ किया है कि फिलहाल पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे में लाना संभव नहीं है, क्योंकि इन पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क लगाती है और राज्यों के लिए मूल्य वर्धित कर (VAT) का यह बहुत बड़ा राजस्व स्रोत हैं. जब तक राजनीतिक सहमति नहीं बन जाती, और राजस्व घाटे की भरपाई का कोई मॉडल तैयार नहीं होता, तब तक इन ईंधनों का जीएसटी के दायरे में आना मुश्किल दिख रहा है.

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