धामदाहा: बिहार की वो 'हॉट सीट' जहां एक 'रानी' का है राज, पर जनता के सवाल भी हैं लाजवाब
बिहार की राजनीति में कुछ सीटें ऐसी हैं, जिनकी चर्चा पटना से लेकर दिल्ली तक होती है. ये सीटें किसी पार्टी की नहीं, बल्कि किसी चेहरे की पहचान बन जाती हैं. पूर्णिया जिले की धामदाहा विधानसभा सीट भी कुछ ऐसी ही है. जब भी धामदाहा का नाम आता है, तो एक ही चेहरा सामने आता है - JDU की कद्दावर नेता और बिहार सरकार में मंत्री लेशी सिंह का.
यह वो सीट है, जिसे लेशी सिंह का 'अभेद्य किला' कहा जाता है. लेकिन इस किले की दीवारों के पीछे जनता के वो मुद्दे भी दबे हैं, जो हर चुनाव में उठते हैं, पर उनका हल आज तक नहीं निकल पाया.
क्यों कहलाता है लेशी सिंह का 'किला'?
लेशी सिंह सिर्फ एक विधायक नहीं हैं, बल्कि उनकी पहचान एक ऐसी नेता की है जिनका अपनी सीट पर पूरा दबदबा है. वो यहां से कई बार चुनाव जीत चुकी हैं और फिलहाल नीतीश कुमार की सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री हैं. उनकी जीत का अंतर भी अक्सर बड़ा होता है. पिछले यानी 2020 के चुनाव में उन्होंने RJD के दिलीप यादव को लगभग 32,000 वोटों के भारी अंतर से हराया था. यही वजह है कि विपक्ष के लिए इस किले में सेंध लगाना हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है.
यहां सिर्फ विकास नहीं, जाति का गणित भी बोलता है
कहने को तो वोट विकास के नाम पर पड़ते हैं, लेकिन धामदाहा की ज़मीनी हक़ीक़त यही है कि यहां जाति का गणित सब पर भारी पड़ता है. इस सीट पर मुस्लिम, यादव, वैश्य, गंगोता और राजपूत समुदाय के वोटर हार-जीत तय करने की ताक़त रखते हैं. पार्टियां भी टिकट देते समय इस समीकरण का पूरा ख़याल रखती हैं. लेशी सिंह की लगातार जीत के पीछे विकास के कामों के साथ-साथ इस सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में बनाए रखने की कला भी एक बड़ा कारण मानी जाती है.
सिक्के का दूसरा पहलू: जनता के वो सवाल जो आज भी अधूरे हैं
धामदाहा की चमक के पीछे कुछ गहरे दर्द भी छिपे हैं. यह इलाक़ा हर साल कोसी नदी की बाढ़ की त्रासदी झेलता है. हर साल हज़ारों लोग बेघर होते हैं, फसलें बर्बाद होती हैं, लेकिन इस समस्या का कोई स्थायी समाधान आज तक नहीं निकल पाया.
दूसरी बड़ी समस्या है रोज़गार की. इलाके में कोई বড় उद्योग या फैक्ट्री न होने की वजह से यहां के हज़ारों नौजवानों को हर साल काम की तलाश में दिल्ली, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों का रुख़ करना पड़ता है. यह 'पलायन का दर्द' यहां के लगभग हर घर की कहानी है.
आगे क्या होगा?
इसमें कोई शक नहीं कि लेशी सिंह का कद और उनकी पकड़ बेहद मज़बूत है। लेकिन बाढ़ की तबाही और रोज़गार की चिंता जैसे सवाल भी जनता के मन में ज़िंदा हैं। अब देखना यह है कि धमदाहा की जनता अगले चुनाव में अपनी 'रानी' पर ही भरोसा करती है या बदलाव की उम्मीद में किसी नए चेहरे को मौका देती है। एक बात तो तय है, बिहार की इस 'हॉट सीट' पर मुकाबला हमेशा की तरह दिलचस्प होगा।
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