Dev Uthani Ekadashi : जब 4 महीने की नींद से जागते हैं भगवान विष्णु, जानिए यह दिलचस्प कहानी
News India Live, Digital Desk : क्या आपने कभी सोचा है कि साल में कुछ महीने ऐसे क्यों होते हैं जब शादी-ब्याह जैसे कोई भी शुभ काम नहीं होते? इसके पीछे एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है जो देवउठनी एकादशी से जुड़ी है। इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।यह वो दिन है जब भगवान विष्णु पूरे चार महीने की गहरी नींद के बाद जागते हैं और इसी के साथ सभी मांगलिक कार्यों की दोबारा शुरुआत हो जाती है।चलिए, आज हम इसी खास दिन और इससे जुड़ी कहानी को सरल शब्दों में जानते हैं।
आखिर क्यों चार महीने सोते हैं भगवान विष्णु?
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि आप दिन-रात जागते रहते हैं और जब सोते हैं तो लाखों वर्षों के लिए सो जाते हैं, जिससे सृष्टि के कामों में बाधा आती है। उन्होंने भगवान से हर साल कुछ समय के लिए आराम करने का अनुरोध किया। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी की बात मानते हुए हर साल चार महीने के लिए योग निद्रा में जाने का नियम बनाया।इस अवधि को 'चातुर्मास' कहते हैं और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन या गृह प्रवेश नहीं किया जाता है।
जब भगवान विष्णु कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जागते हैं, तो उस दिन को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी की कहानी
देवउठनी एकादशी की एक बहुत ही प्रसिद्ध कथा है। एक राज्य था जहाँ का राजा और सारी प्रजा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से रखते थे। उस दिन राज्य में जानवरों को भी अन्न नहीं दिया जाता था
एक दिन, दूसरे राज्य से एक व्यक्ति नौकरी की तलाश में राजा के पास आया। राजा ने उसे इस शर्त पर काम पर रखा कि उसे महीने में दो बार एकादशी के दिन भोजन में अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने हाँ तो कर दी, लेकिन जब एकादशी आई और उसे फलाहार दिया गया, तो वह राजा के पास जाकर अन्न मांगने लगा। उसने कहा कि फलाहार से उसका पेट नहीं भरेगा और वह भूखा मर जाएगा।
राजा ने उसे अपनी शर्त याद दिलाई, पर वह नहीं माना। तब राजा ने उसे आटा, दाल, और चावल दे दिए वह व्यक्ति नदी किनारे गया, स्नान किया और भोजन पकाने लगा। जब भोजन तैयार हो गया, तो उसने भगवान को आवाज लगाई, “हे प्रभु! भोजन तैयार है, आकर ग्रहण कीजिए।”
उसके सच्चे मन से बुलाने पर, भगवान विष्णु स्वयं चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए और उसके साथ प्रेम से भोजन किया। भोजन के बाद भगवान अंतर्धान हो गए।
अगली एकादशी पर उस व्यक्ति ने राजा से दोगुना राशन मांगा और बताया कि पिछली बार भगवान भी उसके साथ भोजन करने आए थे, इसलिए सामान कम पड़ गया था। राजा को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ और उसे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। सच्चाई का पता लगाने के लिए राजा चुपके से उसके पीछे गया।
उस व्यक्ति ने भोजन बनाया और भगवान को पुकारने लगा, पर इस बार भगवान प्रकट नहीं हुए। जब उसने निराश होकर नदी में कूदकर अपनी जान देने का निश्चय किया, तभी भगवान प्रकट हुए और उसे रोक लिया। भगवान ने उसके साथ भोजन किया और फिर उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह सब देखकर राजा को ज्ञान हुआ कि व्रत-उपवास तब तक सफल नहीं होते, जब तक मन शुद्ध और श्रद्धा से भरा न हो।उस दिन से राजा भी सच्चे मन से व्रत करने लगा और अंत में उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई
इस दिन का महत्व
देवउठनी एकादशी का दिन बहुत पवित्र और शुभ माना जाता है। इसी दिन से हिंदू धर्म में विवाह, गृह प्रवेश और अन्य सभी मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है। इस दिन तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह कराने की भी परंपरा है, जिसका विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों का नाश होता है और हर मनोकामना पूरी होती है।
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