Court stuck on Decision: दो नक्सलियों के गैंगेस्टर बनने पर झारखंड हाईकोर्ट में क्यों हुई मतभेद

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News India Live, Digital Desk: Court stuck on Decision:  झारखंड हाईकोर्ट में एक बेहद ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण कानूनी मामला चल रहा है, जहाँ दो कथित नक्सलियों की 'गैंग' के सदस्य के रूप में पहचान को लेकर दो न्यायमूर्तियों के बीच विचारों में भिन्नता आ गई है। यह स्थिति तब बनी जब एक निचली अदालत ने उन्हें 'गैंग' का सदस्य करार दिया था। अब इस पूरे मामले को बड़ी खंडपीठ के पास भेज दिया गया है, जो इस कानूनी उलझन को सुलझाएगी कि 'गैंग' की परिभाषा क्या होनी चाहिए और एक नक्सली संगठन का सदस्य होना किस हद तक 'गैंगस्टर एक्ट' के दायरे में आता है।

यह पूरा मामला गैंगस्टर अधिनियम के तहत पंजीकृत दो अपीलों से संबंधित है। एक अपील में गोपीनाथ मुंडा नामक व्यक्ति शामिल हैं, जबकि दूसरे मामले में जीतमोहन सुंडी नाम के नक्सली नेता का जिक्र है। निचली अदालत ने दोनों को झारखंड नियंत्रण संगठित अपराध अधिनियम (झाड़कोका) या जिसे बोलचाल की भाषा में 'गैंगस्टर एक्ट' कहा जाता है, उसके तहत दोषी पाया था। इसी फैसले को चुनौती देते हुए इन दोनों ने हाईकोर्ट का रुख किया था।

हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई दो न्यायाधीशों, न्याय न्यायमूर्ति रंगन मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की खंडपीठ कर रही थी। सुनवाई के दौरान, एक न्याय मूर्ति का मत था कि निचले न्यायालय ने इन व्यक्तियों को 'गैंग' का सदस्य मानते हुए सजा देने में कोई गलती नहीं की है, क्योंकि वे एक संगठित आपराधिक गिरोह का हिस्सा थे। लेकिन, दूसरे न्यायमूर्ति ने इस बात पर असहमति जताई। उनका मानना था कि इन लोगों पर लगाए गए अपराध भले ही गंभीर हों, लेकिन सिर्फ नक्सली संगठन का सदस्य होना सीधे तौर पर 'गैंग' का सदस्य होना नहीं साबित करता है, जब तक कि यह न दिखाया जाए कि वे 'झाड़कोका' अधिनियम के तहत परिभाषित 'गैंग' की गतिविधियों में सीधे तौर पर संलिप्त थे।

इस वैचारिक भिन्नता के कारण, मामले को अब एक बड़ी बेंच को भेजने का फैसला किया गया है। इसका मतलब है कि हाईकोर्ट के तीन या उससे अधिक न्यायाधीशों की एक बेंच इस मामले पर दोबारा विचार करेगी और यह तय करेगी कि इन दो कथित नक्सलियों को 'गैंग' का सदस्य माना जाना चाहिए या नहीं। इस फैसले का दूरगामी परिणाम हो सकता है, क्योंकि यह झारखंड में नक्सलवाद से जुड़े मामलों में 'गैंगस्टर एक्ट' के लागू होने की परिभाषा और दायरे को स्पष्ट करेगा। यह स्पष्टता भविष्य में ऐसे ही मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकती है।

यह घटना दिखाती है कि कानूनी व्याख्या कितनी सूक्ष्म और जटिल हो सकती है, खासकर ऐसे मामलों में जहाँ कानून की शब्दावली और जमीनी हकीकत के बीच संतुलन साधना होता है। झारखंड एक नक्सल प्रभावित राज्य है, और ऐसे मामलों में अदालतों का हर फैसला पुलिस, प्रशासन और जनता सभी के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट की बड़ी बेंच पर टिकी हैं कि वह इस संवेदनशील और जटिल कानूनी पहेली को कैसे सुलझाती है

 

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