Cloudburst : हिमालय का नया रूप, अब अकेले नहीं, झुंड में आती हैं आपदाएं - जानिए इस खौफनाक सच्चाई को

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News India Live, Digital Desk: हिमालय की शांत और खूबसूरत वादियां अब पहले जैसी नहीं रहीं. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) ने यहाँ के मौसम का मिजाज कुछ ऐसा बदला है कि अब आपदाएं अकेले नहीं, बल्कि झुंड में आने लगी हैं. विशेषज्ञ इसे "मल्टी-कम्पोनेंट डिजास्टर" या "एक साथ कई आपदाओं का आना" कह रहे हैं, जो एक नया और बेहद खतरनाक ट्रेंड है.

सोचिए, कहीं बादल फटता है, उससे अचानक बाढ़ (Flash Flood) आ जाती है. यह बाढ़ अपने साथ भारी मात्रा में मलबा और पत्थर लेकर आती है, जिससे भूस्खलन (Landslide) शुरू हो जाता है. फिर यह मलबा किसी नदी के रास्ते को रोक देता है, जिससे एक अस्थायी झील बन जाती है और जब यह झील टूटती है, तो नीचे बसे गांवों में जल प्रलय आ जाता है. यह सिर्फ एक कल्पना नहीं, बल्कि हिमालय के कई इलाकों की कड़वी हकीकत बनती जा रही है.

आपदाओं का यह झुंड क्यों बन रहा है?

इस खतरनाक सिलसिले के पीछे सबसे बड़ा हाथ जलवायु परिवर्तन का है. दुनिया के बाकी हिस्सों के मुकाबले हिमालय का तापमान कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है. इसके कई असर हो रहे हैं:

  • गलते ग्लेशियर और अस्थिर ढलान: तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं सदियों से जमी हुई बर्फ, जो पहाड़ों की ढलानों को बांधकर रखती थी, अब कमज़ोर पड़ रही है. इससे चट्टानें और मिट्टी खिसकने का खतरा कई गुना बढ़ गया है.
  • बारिश का बदलता पैटर्न: अब कम समय में बहुत ज़्यादा और तेज़ बारिश होने लगी है.ऐसी भीषण बारिश नाज़ुक पहाड़ियों पर पड़ती है, तो अपने साथ सब कुछ बहा ले जाती है.
  • इंसानी दखल: इसके अलावा, सड़कों, बांधों और होटलों के अनियोजित निर्माण ने पहाड़ों को और भी खोखला और कमज़ोर बना दिया है.

क्या होता है जब एक साथ कई आपदाएं आती हैं?

जब एक आपदा दूसरी आपदा को जन्म देती है, तो इसे "कैस्केडिंग डिजास्टर" (Cascading Disasters) भी कहते हैं.हाल के सालों में हिमालयी क्षेत्रों में ऐसी कई घटनाएं देखने को मिली हैं.इन घटनाओं में एक छोटी सी शुरुआत भी बहुत बड़े इलाके में भारी तबाही मचा सकती है. ऊपर पहाड़ों में हुई एक घटना का असर नीचे मैदानी इलाकों में बसे लोगों की ज़िंदगी पर भी पड़ता है

आगे का रास्ता क्या है?

विशेषज्ञों का मानना है कि हमें हिमालय को देखने का नज़रिया बदलना होगा. अब सिर्फ़ बाढ़ या भूस्खलन से अलग-अलग निपटने से काम नहीं चलेगा. हमें यह समझना होगा कि ये सभी आपदाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं. ज़रूरत ऐसी योजनाएं बनाने की है जो इस 'बहु-घटक आपदा' के ख़तरे को ध्यान में रखकर तैयार की जाएं. इसमें स्थानीय लोगों के पारंपरिक ज्ञान को साथ लेकर चलना और किसी भी तरह के निर्माण कार्य को पर्यावरण के नियमों की कसौटी पर कसना बहुत ज़रूरी है.

हिमालय हमें चेतावनी दे रहा है. अगर हमने इस चेतावनी को अनसुना किया, तो इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

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