Chhath Puja 2025: नहाय खाय के साथ शुरू हुआ महापर्व, जानें इस दिन क्या करें और क्या न करें

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News India Live, Digital Desk: छठ पूजा, जिसे आस्था का महापर्व कहा जाता है, उसकी शुरुआत 'नहाय खाय' की परंपरा के साथ हो जाती है। यह चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन व्रत का सबसे पहला और महत्वपूर्ण दिन होता है। इसी दिन से व्रती यानी व्रत रखने वाले लोग पूरी सात्विकता और नियमों का पालन करते हुए पूजा की तैयारी में जुट जाते हैं। 'नहाय खay' का मतलब है - स्नान करके भोजन ग्रहण करना। इस दिन से ही घर का माहौल पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है।

कैसे होती है 'नहाय खाय' की शुरुआत?

इस दिन सुबह-सुबह व्रती किसी पवित्र नदी, तालाब या फिर घर पर ही गंगाजल मिले पानी से स्नान करते हैं। इसके बाद साफ-सुथरे और धुले हुए वस्त्र पहने जाते हैं। इस दिन की सबसे खास बात होती है इसका प्रसाद। स्नान के बाद व्रती खुद प्रसाद के लिए भोजन तैयार करते हैं। इसमें मुख्य रूप से अरवा चावल (बिना उबला हुआ चावल), चने की दाल और लौकी (कद्दू) की सब्जी बनाई जाती है।

सबसे पहले तैयार भोजन को सूर्य देवता को भोग लगाया जाता है, और फिर व्रती इसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य खाना खाते हैं।

नहाय खाय के दिन क्या करना चाहिए?

  • व्रत का संकल्प लेने वाले महिला या पुरुष को इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
  • पूरे घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई करें, खासकर रसोई को पवित्र रखें।
  • इस दिन से ही व्रती को जमीन पर सोना शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए साफ कपड़े बिछाकर चटाई या कंबल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • खाना बनाने में सिर्फ सेंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी या कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल बहुत शुभ माना जाता है।

नहाय खाय के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  • इस दिन से घर में तामसिक भोजन यानी लहसुन-प्याज का इस्तेमाल बिल्कुल बंद कर देना चाहिए।
  • व्रत रखने वाले को किसी भी तरह के बुरे विचार मन में नहीं लाने चाहिए और न ही किसी से झगड़ा करना चाहिए।
  • नहाय खाय का प्रसाद बनाने के बाद सबसे पहले व्रती ही इसे ग्रहण करते हैं, उनसे पहले किसी को नहीं खाना चाहिए।
  • मांसाहारी भोजन और शराब जैसी चीजों का सेवन घर में भूलकर भी न करें।
  • इस दिन से ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है।

नहाय खाय का दिन सिर्फ एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह व्रती को आने वाले 36 घंटों के कठिन निर्जला व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करता है।

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