चौपड़ी (Chhaupadi): नेपाल की एक पारंपरिक माहवारी प्रथा और इसके दुष्परिणाम

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चौपड़ी नेपाल के पश्चिमी हिस्से में प्रचलित एक सशक्त धार्मिक- सांस्कृतिक परंपरा है, जिसमें मासिक धर्म के दौरान महिलाओं और लड़कियों को “अशुद्ध” माना जाता है और घर से बाहर निकाल दिया जाता है। इस अवधि में वे आम घरेलू गतिविधियों से वंचित रहकर अलग, अक्सर मिट्टी और पत्थरों के बने छोटे ‘चौपड़ी कुटिया’ या पशुओं के शेड में रहने को मजबूर होती हैं।

चौपड़ी का तात्पर्य और उत्पत्ति

‘चौपड़ी’ शब्द स्थानीय भाषा के ‘चौ’ (अशुद्ध) और ‘पड़ी’ (होना) से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘अशुद्ध होना’। इसका मूल कारण यह आस्थाएं हैं कि मासिक धर्म वाली महिला के सम्पर्क में आने से:

पेड़-पौधे फल नहीं देंगे,

गाय दूध देना बंद कर देगी,

पुरुष बीमार हो सकते हैं,

देवी सरस्वती क्रोधित हो जाती हैं,

पूजा-पाठ, सामाजिक और धार्मिक अवसरों से बाहर रहना पड़ेगा।

इन भ्रामक मान्यताओं के कारण महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक जीवन से अलग रखा जाता है।

चौपड़ी के दौरान होने वाली प्रतिबंध

घर में प्रवेश व सामान्य क्रियाओं से वंचित रखना,

भोजन में निरोध: दूध, दही, मांस, फल और हरे सब्जियों का सेवन मना,

सार्वजनिक पानी के स्रोतों, पूजा स्थलों, और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग न लेना,

पुरुषों, पशुओं और पौधों को छूने से रोकना,

अलग स्थान पर खाना-पीना, अलग बिस्तर पर सोना, अलग बर्तन का प्रयोग करना।

जीवन एवं स्वास्थ्य पर प्रभाव

बंदी बनाए गए छोटे, अंधे- कुटिया में रहने के कारण निम्नलिखित समस्याएं: ठंड लगना, सांस की तकलीफें, घुटन, अस्वच्छता, और कभी-कभी मृत्यु तक।

पोषण की कमी और सीमित भोजन सामग्री से शारीरिक कमजोरी।

सामाजिक अलगाव के कारण मानसिक तनाव, अकेलापन, नींद में खलल।

सामाजिक वास्तविकता

असंख्य महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान खेतों में काम करना पड़ता है क्योंकि घर बंद होता है पर मेहनत जारी रहती है।

यह पहलू ग्रामीण और पश्चिमी नेपाल में तीव्रता से प्रचलित रहा है।

अधिकांश सहभागी लड़कियां और महिलाएं इस प्रथा को परिवार और परंपरा के दबाव में निभाती हैं क्योंकि इसके उल्लंघन से परिवार को कष्ट या अपशकुन की आशंका होती है।

कानूनी पहल

नेपाल सरकार ने 2005 में चौपड़ी प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था।

2017 में इसे अपराध घोषित कर तीन महीने की जेल और जुर्माना लगाने का प्रावधान बनाया गया।

इसके बावजूद, ग्रामीण इलाकों में चेतना और शिक्षित स्तर की कमी के कारण प्रथा जारी है।

सरकार और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं द्वारा जागरूकता और सख्त कानून की आवश्यकता पर कार्य जारी है।

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