CAT Score Analysis : मार्क्स कैलकुलेट कर लिए? अब असली कहानी सुनिए जो Percentile तय करती है

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News India Live, Digital Desk : CAT 2025 (Common Admission Test) का एग्जाम हो चुका है। अब वो समय चल रहा है जब छात्रों की धड़कनें तेज हैं और दिमाग में बस एक ही कैलकुलेटर चल रहा है "भाई, मेरे कितने नंबर आ रहे हैं?" और "क्या इतने नंबर में IIM की कॉल आएगी?"

लेकिन रुकिए! अगर आप अपने जोड़े हुए नंबरों (Raw Score) को ही अपना फाइनल रिजल्ट मान रहे हैं, तो आप गलती कर रहे हैं। कैट का खेल इतना सीधा नहीं है। यहाँ सिर्फ आपकी मेहनत नहीं, बल्कि 'किस्मत' और 'गणित' का भी एक तगड़ा रोल होता है। अक्सर ऐसा होता है कि एक छात्र को लगता है कि उसने पेपर फोड़ दिया है, लेकिन जब फाइनल स्कोरकार्ड आता है तो वो हैरान रह जाता है।

इसके पीछे दो भारी-भरकम शब्द हैं— नॉर्मलाइजेशन (Normalization) और स्केल्ड स्कोर (Scaled Score)। चलिए, इसे एकदम आसान भाषा में समझते हैं ताकि रिजल्ट वाले दिन आपको झटका न लगे।

रॉ स्कोर (Raw Score) vs. स्केल्ड स्कोर (Scaled Score)

सबसे पहले ये समझिए कि आप एग्जाम देकर आए, आपने आंसर की (Answer Key) चेक की और आपको लगा कि आपके 60 नंबर बन रहे हैं। यह आपका 'रॉ स्कोर' है। यानी शुद्ध नंबर जो आपने कमाए।

लेकिन, IIM यह रॉ स्कोर नहीं देखता। वो देखता है 'स्केल्ड स्कोर'
मान लीजिए कि CAT का एग्जाम तीन शिफ्ट (Slot 1, 2, 3) में हुआ। अब हो सकता है कि 'स्लॉट 1' का पेपर बहुत मुश्किल था और 'स्लॉट 3' का पेपर हलवा (आसान) था।
अब अगर स्लॉट 3 वाला छात्र 100 नंबर ले आए और स्लॉट 1 वाला मुश्किल पेपर में सिर्फ 70 ला पाए, तो क्या यह स्लॉट 1 वाले के साथ नाइंसाफी नहीं होगी? बिलकुल होगी।

इसी नाइंसाफी को खत्म करने के लिए 'नॉर्मलाइजेशन' आता है। यह एक ऐसा फॉर्मूला है जिससे तीनों शिफ्ट के पेपर की कठिनाई (Difficulty Level) को बराबर किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो—

  • अगर आपकी शिफ्ट मुश्किल थी: तो खुश हो जाइये, आपके नंबर बढ़ाए जा सकते हैं। (बोनस समझ लो!)
  • अगर आपकी शिफ्ट आसान थी: तो सॉरी बॉस, आपके नंबर थोड़े कम भी हो सकते हैं, ताकि सबको एक लेवल पर लाया जा सके।

इसी जोड़ा-घटाने के बाद जो फाइनल नंबर बनते हैं, उसे 'स्केल्ड स्कोर' कहते हैं और यही आपकी तकदीर तय करता है।

स्कोर और पर्सेंटाइल का लोचा क्या है?

अक्सर स्टूडेंट्स पूछते हैं— "सर, 99 पर्सेंटाइल के लिए कितने मार्क्स चाहिए?"
याद रखिए, पर्सेंटाइल (Percentile) आपके मार्क्स नहीं, बल्कि आपकी रैंक है।
अगर आपका 90 पर्सेंटाइल है, इसका मतलब यह नहीं कि आपको 90% नंबर मिले हैं। इसका मतलब है कि आपने एग्जाम देने वाले 90% बच्चों से बेहतर प्रदर्शन किया है, आप उनसे आगे हैं।

  • कभी-कभी पेपर बहुत टफ होता है, तो 70-80 मार्क्स पर भी 99 पर्सेंटाइल बन जाती है।
  • और कभी पेपर आसान होता है, तो 100 मार्क्स लाने पर भी 95 पर्सेंटाइल पर अटकना पड़ता है।

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