Bihar Political History : जब MLA चुनाव तो जीत गए, पर विधानसभा का मुंह तक नहीं देख पाए ,बिहार का वो अनोखा सियासी किस्सा

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News India Live, Digital Desk: Bihar Political History : भारतीय राजनीति में कई ऐसे दिलचस्प किस्से हुए हैं, जिन पर यकीन करना मुश्किल लगता है। आज हम आपको बिहार की राजनीति का एक ऐसा ही किस्सा बताने जा रहे हैं, जब विधायक चुनाव तो जीत गए, शपथ भी ले ली, लेकिन उन्हें विधानसभा के अंदर जाने का मौका ही नहीं मिला। विधानसभा के गेट पर ताला लटका था और बिहार की अगली सरकार की पूरी रणनीति पटना से मीलों दूर, दिल्ली में जॉर्ज फर्नांडिस के घर पर बन रही थी।

यह कहानी है साल 2005 की। उस दौर में बिहार की राजनीति एक बड़े बदलाव से गुज़र रही थी। 15 सालों से सत्ता पर काबिज लालू प्रसाद यादव का जादू फीका पड़ रहा था और नीतीश कुमार एक नई उम्मीद बनकर उभर रहे थे।फरवरी 2005 में विधानसभा के चुनाव हुए, लेकिन नतीजे कुछ ऐसे आए कि सरकार बनाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था।

जब किसी को नहीं मिला बहुमत

फरवरी 2005 के चुनाव में किसी भी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जरूरी 122 सीटें नहीं मिलीं। लालू यादव की पार्टी RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी, लेकिन बहुमत से काफी दूर थी। वहीं, जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं था। सत्ता की चाबी रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के पास थी, जिसके बिना कोई सरकार नहीं बन सकती थी।

महीनों तक जोड़-तोड़ की राजनीति चलती रही, लेकिन कोई हल नहीं निकला। इसी सियासी उठापटक के बीच, केंद्र की UPA सरकार ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया और विधानसभा को भंग कर दिया गया।

और MLAs के लिए बंद हो गए विधानसभा के दरवाजे

राष्ट्रपति शासन लगने और विधानसभा भंग होने का सीधा मतलब यह था कि जो विधायक फरवरी में चुनाव जीतकर आए थे, उनकी विधायकी बिना एक भी दिन सदन में बैठे ही खत्म हो गई। वो बिहार के ऐसे विधायक बनकर रह गए, जो कभी विधानसभा का मुंह ही नहीं देख पाए। यह एक ऐसी स्थिति थी, जहाँ जनता ने अपने प्रतिनिधि तो चुन लिए थे, पर वो प्रतिनिधि सदन तक पहुंच ही नहीं सके।

दिल्ली में जॉर्ज फर्नांडिस का घर बना 'पावर सेंटर'

जब पटना में विधानसभा पर ताला लगा था, तब असली सियासी मंथन दिल्ली में चल रहा था। उस समय के कद्दावर नेता और NDA के संयोजक जॉर्ज फर्नांडिस का दिल्ली वाला घर बिहार की राजनीति का नया केंद्र बन गया था। जेडीयू और बीजेपी के तमाम बड़े नेता वहीं बैठकर अगली रणनीति तैयार कर रहे थे। इस बात पर चर्चा हो रही थी कि अब आगे क्या करना है और अगले चुनाव की तैयारी कैसे करनी है। उस घर में बिहार की अगली सरकार की नींव रखी जा रही थी।

आखिरकार, उसी साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार में दोबारा चुनाव हुए। इस बार जनता ने एकतरफा फैसला सुनाया और नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। लेकिन 2005 का वो दौर आज भी बिहार की राजनीति में एक ऐसे समय के रूप में याद किया जाता है, जब चुने हुए विधायक अपने ही सदन में दाखिल नहीं हो पाए थे और सारी रणनीति विधानसभा से दूर एक घर में बन रही थी।

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