Bastar Naxalite Surrender : बस्तर में फिर कमजोर हुआ लाल आतंक 89 लाख के इनामियों का घर वापसी
News India Live, Digital Desk : छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सुरक्षा बलों को एक बार फिर बड़ी कामयाबी मिली है। माओवादियों की जड़ों पर चोट करते हुए पुलिस ने 'लाल आतंक' को एक और बड़ा झटका दिया है। नारायणपुर (Narayanpur) जिले में एक या दो नहीं, बल्कि पूरे 28 नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा (Mainstream) में लौटने का फैसला किया है।
इस सरेंडर ने नक्सली संगठन की कमर तोड़ दी है क्योंकि हथियार डालने वालों में कई बड़े कमांडर शामिल हैं। इनमें डीवीसी (Divisional Committee) मेंबर दिनेश पांडेय (Dinesh Pandey) का नाम सबसे प्रमुख है।
आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि बस्तर में आखिर चल क्या रहा है और यह सरेंडर इतना खास क्यों है।
89 लाख का इनाम और 19 महिलाएं
पुलिस के मुताबिक, सरेंडर करने वाले इन 28 नक्सलियों पर कुल मिलाकर 89 लाख रुपये का इनाम घोषित था। यह आंकड़ा बताता है कि ये लोग संगठन में कितने अहम थे। सबसे हैरानी और राहत की बात यह है कि सरेंडर करने वालों में 19 महिलाएं भी शामिल हैं।
बस्तर आईजी (IG) पी. सुंदरराज ने बताया कि ये नक्सली लंबे समय से जंगलों में सक्रिय थे। इनके पास से इन्सास राइफल, एसएलआर (SLR) और 12 बोर की बंदूकें भी बरामद हुई हैं, जो इन्होंने पुलिस को सौंप दीं।
कौन है दिनेश पांडेय? (Who is Dinesh Pandey)
सरेंडर करने वाले नक्सलियों में दिनेश पांडेय उर्फ पांडी ध्रुव (Pandi Dhruv) सबसे बड़ा चेहरा है। वह नक्सलियों की कुतुल एरिया कमेटी का DVC सदस्य था। उस पर अकेले 8 लाख रुपये (कुछ रिपोर्ट्स में 10 लाख तक) का इनाम था। दिनेश पांडेय का सरेंडर करना नक्सलियों के लिए किसी झटके से कम नहीं है क्योंकि डीवीसी मेंबर संगठन की रणनीतियों का हिस्सा होते हैं।
क्यों हुआ "मोहभंग"? (Reason for Surrender)
हथियार डालने के बाद इन नक्सलियों ने जो वजह बताई, वह गौर करने लायक है। उन्होंने कहा:
- खोखली विचारधारा: नक्सली अब समझ चुके हैं कि हिंसा और जंगल की लड़ाई का कोई अंत नहीं है। संगठन अपनी विचारधारा से भटक चुका है।
- विकास का असर: सरकार की योजनाओं, खासकर 'नियत नेलानार' (आपका अच्छा गांव) योजना ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने देखा कि गांवों में सड़क, बिजली और पानी पहुंच रहा है, जबकि वो जंगल में बेवजह भटक रहे हैं।
- भेदभाव: बड़े नक्सली लीडर (जो आंध्र और तेलंगाना से हैं) छोटे कैडर्स का शोषण करते हैं, जिससे स्थानीय नक्सली नाराज़ हैं।
सरकार की पहल रंग लाई
छत्तीसगढ़ पुलिस का 'पूना नर्कोम' (नई सुबह/नई शुरुआत) अभियान लगातार असर दिखा रहा है। पुलिस का कहना है कि जो भी नक्सली हिंसा छोड़कर आएगा, उसे सरकार की पुनर्वास नीति (Rehabilitation Policy) के तहत घर, नौकरी और पैसे की मदद मिलेगी।
सरेंडर करने वाले सभी 28 नक्सलियों को प्रोत्साहन राशि दी गई है। यह घटना बस्तर के उन भटके हुए नौजवानों के लिए एक संदेश है कि जंगल में मौत इंतज़ार कर रही है, लेकिन समाज में नई ज़िंदगी।
बस्तर अब बदल रहा है, और यह सरेंडर उस बदलाव की एक और गवाही है।
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