दुनिया की तमाम पाबंदियों के बीच, पुराना दोस्त आ रहा है घर पुतिन की भारत यात्रा के असल मायने क्या हैं?

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News India Live, Digital Desk : दुनिया में चाहे जितनी उथल-पुथल मची हो, भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह अपने दोस्तों को कभी नहीं छोड़ता। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ रहे हैं, और यह दौरा सिर्फ एक रस्मी मुलाकात नहीं है, बल्कि दुनिया को एक बड़ा कड़ा सन्देश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन की यह 'एनुअल समिट' (वार्षिक बैठक) कई मायनों में ऐतिहासिक होने वाली है।

यह मुलाकात इतनी ख़ास क्यों है?

हम सब जानते हैं कि पिछले कुछ समय से पश्चिमी देश (खासकर अमेरिका और यूरोप) यह कोशिश कर रहे हैं कि दुनिया रूस से कट जाए। लेकिन भारत अपनी विदेश नीति पर अडिग है 'हमारे लिए देशहित सबसे ऊपर है'। पुतिन का भारत आना यह दिखाता है कि नई दिल्ली और मॉस्को के रिश्ते दबाव की राजनीति से नहीं चलते।

इस मुलाकात में चाय-नाश्ते के साथ-साथ कुछ बहुत ही गंभीर और बड़े मसलों पर बात होगी। सबसे ज्यादा चर्चा 'डिफेंस' (रक्षा) और 'ट्रेड' (व्यापार) को लेकर है।

क्या 'ब्रह्मास्त्र' ला रहे हैं पुतिन? (Su-57 की चर्चा)

डिफेंस की दुनिया में जिस चीज़ पर सबकी निगाहें टिकी हैं, वो है— Su-57 फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट। खबर है कि रूस भारत को यह सुपर-एडवांस लड़ाकू विमान ऑफर कर रहा है। इसके साथ ही, इस बात पर भी चर्चा हो सकती है कि क्या इन विमानों को 'मेक इन इंडिया' के तहत भारत में ही बनाया जा सकता है? सोचिये, अगर यह डील पक्की होती है, तो भारतीय वायुसेना की ताकत आसमान छूने लगेगी।

इसके अलावा, पुरानी डिफेंस डील्स, स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई और मिलिट्री तकनीक को साझा करने पर भी मोदी और पुतिन के बीच 'सीधी बात' होगी।

जेब की बात: व्यापार और तेल

हथियारों के अलावा, आम आदमी के लिए जो चीज़ मायने रखती है, वो है एनर्जी और ट्रेड। भारत रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है, जिससे हमारी इकोनॉमी को काफी फायदा हुआ है। इस बैठक में कोशिश होगी कि दोनों देशों के बीच व्यापार और आसान हो। पेमेंट को लेकर जो दिक्क़तें आती हैं (डॉलर vs रुपया vs रूबल), उनका भी कोई पक्का समाधान निकाला जाएगा।

रूस यह चाहता है कि भारत उसके यहां ज्यादा निवेश करे और भारत चाहता है कि व्यापार का संतुलन बना रहे।

निष्कर्ष: दोस्ती और डिप्लोमेसी का बैलेंस

कुल मिलाकर बात यह है कि पुतिन का यह दौरा भारत की "दमदार कूटनीति" का प्रतीक है। पीएम मोदी दुनिया को यह साफ़ कर रहे हैं कि हम अमेरिका के भी अच्छे दोस्त हैं, लेकिन अपने पुराने और भरोसेमंद साथी रूस का साथ भी नहीं छोड़ेंगे।

जब ये दोनों नेता हाथ मिलाएंगे, तो यकीन मानिए, उस तस्वीर के कई सियासी मायने निकाले जाएंगे न सिर्फ दिल्ली और मॉस्को में, बल्कि वाशिंगटन और बीजिंग में भी। यह सिर्फ एक विजिट नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती ताकत का सबूत है।

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