बिहार में मुस्लिम वोटों में बिखराव, RJD-कांग्रेस के आरोपों पर AIMIM का पलटवार इसकी ज़िम्मेदार कौन?

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News India Live, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कई सियासी समीकरणों को तोड़कर रख दिया है। एक तरफ जहां NDA ने शानदार जीत हासिल की है, वहीं महागठबंधन की हार के कारणों की पड़ताल शुरू हो गई है। इस चुनाव में जो एक बात सबसे बड़ी बहस का मुद्दा बनी हुई है, वो है मुस्लिम वोटों का बिखराव। पारंपरिक रूप से RJD-कांग्रेस गठबंधन का आधार माने जाने वाले मुस्लिम वोटों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बड़ी सेंध लगा दी है, खासकर सीमांचल के इलाके में।

क्या ओवैसी ने बिगाड़ा महागठबंधन का खेल?

सीमांचल, बिहार का वो इलाका है जहां मुस्लिम आबादी अच्छी-खासी संख्या में है और चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालती है। सालों से यह RJD और कांग्रेस का मजबूत किला माना जाता रहा है। लेकिन इस बार ओवैसी की पार्टी AIMIM ने कई सीटों पर दमदार प्रदर्शन करते हुए महागठबंधन का गणित बिगाड़ दिया। AIMIM की मौजूदगी ने कई सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया, जिसका सीधा फायदा NDA के उम्मीदवारों को मिला।

नतीजे सामने आने के बाद कांग्रेस और RJD के नेता खुलकर AIMIM को 'वोट कटवा' पार्टी और बीजेपी की 'B-टीम' बता रहे हैं। उनका आरोप है कि ओवैसी ने जानबूझकर ऐसी सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जहां महागठबंधन के जीतने की संभावना थी, ताकि सेक्युलर वोटों को बांटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाया जा सके।

AIMIM का जवाब- हमें हल्के में लेना बंद करें

इन आरोपों पर AIMIM ने भी तीखा पलटवार किया है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि मुस्लिम वोटों के बंटवारे के लिए RJD और कांग्रेस खुद जिम्मेदार हैं, ओवैसी की पार्टी नहीं। AIMIM के राष्ट्रीय प्रवक्ता वारिस पठान ने साफ कहा कि उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

ओवैसी अपनी रैलियों में लगातार यह कहते रहे हैं कि तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा है और उनके विकास के लिए कभी कोई ठोस काम नहीं किया। AIMIM का तर्क है कि वो मुसलमानों को उनका राजनीतिक हक़ दिलाने के लिए मैदान में हैं, किसी को हराने या जिताने के लिए नहीं। पार्टी का कहना है कि अब मुसलमान किसी के बंधुआ वोटर नहीं हैं और वे अपना नेता खुद चुनना चाहते हैं।

कौन है असली ज़िम्मेदार?

इस सियासी तू-तू मैं-मैं के बीच सवाल यही है कि इस बिखराव का असली जिम्मेदार कौन है? क्या यह ओवैसी की बढ़ती लोकप्रियता है, जिसने मुस्लिम युवाओं को एक नया विकल्प दिया है? या यह महागठबंधन की अपनी रणनीति की विफलता है, जो अपने पारंपरिक वोट बैंक को सहेजकर नहीं रख सकी?

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अब बिहार में मुस्लिम वोटर केवल धार्मिक पहचान पर वोट नहीं कर रहे, बल्कि शिक्षा, रोजगार और विकास जैसे मुद्दे भी उनके लिए उतने ही अहम हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने इस बार अलग-अलग पार्टियों पर अपना भरोसा जताया है। यह नतीजे सभी "सेक्युलर" दलों के लिए एक बड़ी चेतावनी हैं कि वे मुस्लिम समुदाय को हल्के में लेने की गलती अब और नहीं कर सकते।

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