2024 में 'चमत्कार' के बाद सपा का 2027 के लिए 'मास्टरप्लान'! जिलों से लेकर बूथ तक, सब कुछ बदलने की तैयारी
लोकसभा चुनाव 2024 में मिली अप्रत्याशित सफलता से उत्साहित होकर, समाजवादी पार्टी (सपा) अब चैन से बैठने के मूड में बिल्कुल नहीं है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को फतह करने के लिए अभी से कमर कस ली है। इसके लिए पार्टी संगठन में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव करने की तैयारी चल रही है।
मिशन-2027 की इस बड़ी लड़ाई से पहले, 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव को 'सेमीफाइनल' मानते हुए, सपा अपनी पूरी मशीनरी को बूथ स्तर तक मजबूत करने जा रही है।
'ओवरहालिंग' मोड में सपा, क्या है पूरा प्लान?
सूत्रों के मुताबिक, सपा अपने संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक, बड़े पैमाने पर फेरबदल करने जा रही है।
- नए चेहरों को मिलेगी ज़िम्मेदारी: पार्टी में कई जिलों के जिलाध्यक्ष बदले जा सकते हैं और संगठन में नए प्रभारियों की तैनाती की जाएगी। ख़ास बात यह है कि इस बार प्रभारियों को उनके अपने जिले से बाहर दूसरे जिलों की ज़िम्मेदारी दी जाएगी, ताकि वे निष्पक्ष होकर काम कर सकें।
- 'PDA' बनेगा सबसे बड़ा हथियार: लोकसभा चुनाव में सपा की सफलता का सबसे बड़ा कारण था उसका 'PDA' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का फॉर्मूला। अब इसी फॉर्मूले को और भी धारदार बनाया जा रहा है। हर ज़िले में जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ही नई तैनातियां की जाएंगी।
- फोकस उन सीटों पर, जहां कभी नहीं जीती सपा: पार्टी इस बार सिर्फ अपनी जीती हुई सीटों पर ही नहीं, बल्कि उन विधानसभा सीटों पर भी खास ध्यान दे रही है, जहां सपा का खाता आज तक नहीं खुला है। इन 'हारी हुई' सीटों के लिए अभी से खास रणनीति बनाई जा रही है।
पंचायत चुनाव को बनाया 'लिटमस टेस्ट'
2027 की बड़ी लड़ाई से पहले, सपा 2026 के पंचायत चुनावों को अपने संगठन की ताकत परखने का सबसे बड़ा मौका मान रही है। पार्टी की रणनीति है कि पंचायत चुनाव से पहले-पहले बूथ स्तर तक की कमेटियों को फिर से खड़ा किया जाए और उन्हें पूरी तरह सक्रिय कर दिया जाए।
पार्टी का मानना है कि अगर पंचायत चुनाव में बूथ मैनेजमेंट सफल रहा, तो यह 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक मजबूत नींव का काम करेगा, और 2012 वाला प्रदर्शन दोहराने का सपना साकार हो सकेगा।
साफ है, सपा लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद आत्मविश्वास से लबालब है और इस 'मोमेंटम' को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती। अब देखना यह है कि संगठन में होने वाला यह बड़ा बदलाव ज़मीन पर कितना असर दिखा पाता है।
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