3 साल तक प्रीमियम भरने के बाद क्या बीमा कंपनी क्लेम खारिज कर सकती है? जानें क्या कहता है कानून

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यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है जो लगभग हर जीवन बीमा पॉलिसीधारक के मन में आता है. इसका सीधा और सरल जवाब है - नहीं, सामान्य परिस्थितियों में कोई भी बीमा कंपनी 3 साल तक लगातार प्रीमियम चुकाए जाने के बाद जीवन बीमा के दावे को अस्वीकार नहीं कर सकती.

यह सुरक्षा पॉलिसीधारक को बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 45 (Section 45 of the Insurance Act, 1938) के तहत मिलती है. इस धारा को पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया एक 'सुनहरा नियम' माना जाता है.

क्या है बीमा अधिनियम की धारा 45?

धारा 45 के अनुसार, एक बार जब कोई जीवन बीमा पॉलिसी लगातार तीन साल तक सक्रिय (active) रह जाती है, तो बीमा कंपनी उस पॉलिसी को गलत जानकारी (misstatement) या कोई तथ्य छिपाने (non-disclosure)के आधार पर चुनौती नहीं दे सकती. इसका मतलब है कि 3 साल के बाद कंपनी यह कहकर क्लेम खारिज नहीं कर सकती कि पॉलिसी खरीदते समय ग्राहक ने कोई जानकारी गलत दी थी या छिपाई थी. इस तीन साल की अवधि को "अविभाज्यता अवधि" (Incontestability Period) कहा जाता है.

3 साल से पहले और 3 साल के बाद की स्थिति में अंतर

स्थिति3 साल पूरे होने से पहले3 साल पूरे होने के बाद
दावा अस्वीकार करने का आधारबीमा कंपनी किसी भी महत्वपूर्ण तथ्य (material fact) को छिपाने या गलत बताने पर दावा अस्वीकार कर सकती है. चाहे वह गलती अनजाने में हुई हो.दावा केवल एक ही शर्त पर अस्वीकार किया जा सकता है - सुनियोजित धोखाधड़ी (Proven Fraud).
सबूत का बोझकंपनी को केवल यह साबित करना होता है कि दी गई जानकारी गलत थी और वह महत्वपूर्ण थी.कंपनी को यह साबित करना होगा कि पॉलिसीधारक ने जानबूझकर और धोखा देने के इरादे से महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी.

नियम का सबसे बड़ा अपवाद - "धोखाधड़ी (Fraud)"

धारा 45 पॉलिसीधारकों को मज़बूत सुरक्षा देती है, लेकिन यह धोखाधड़ी करने वालों को नहीं बचाती. अगर बीमा कंपनी यह साबित कर देकि पॉलिसीधारक ने जानबूझकर धोखा देने के इरादे से कोई महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी, तो वह 3 साल के बाद भी क्लेम को अस्वीकार कर सकती है.

धोखाधड़ी के कुछ उदाहरण:

  • पॉलिसी लेने से पहले किसी गंभीर बीमारी (जैसे कैंसर, हृदय रोग) के बारे में पता होने के बावजूद उसे जानबूझकर छिपाना.
  • धूम्रपान करने की आदत के बारे में सीधे तौर पर झूठ बोलना.
  • अपनी उम्र या आय के गलत दस्तावेज़ जमा करना.

यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि धोखाधड़ी को साबित करने का पूरा ज़िम्मा (Burden of Proof) बीमा कंपनी का होता है, जो कि बहुत मुश्किल काम है. सिर्फ शक के आधार पर क्लेम खारिज नहीं किया जा सकता.

अगर 3 साल बाद भी क्लेम खारिज हो जाए तो क्या करें?

यदि कोई बीमा कंपनी धोखाधड़ी का आरोप लगाकर आपका दावा खारिज करती है, तो आप निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:

  1. लिखित कारण मांगें:सबसे पहले, कंपनी से दावा खारिज करने का स्पष्ट कारण लिखित में मांगें.
  2. शिकायत निवारण अधिकारी:कंपनी के आंतरिक शिकायत निवारण अधिकारी (Grievance Redressal Officer) से संपर्क करें.
  3. IRDAI से संपर्क करें: यदि वहां से समाधान नहीं मिलता है, तो आप भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के ऑनलाइन पोर्टल 'बीमा भरोसा' पर शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
  4. बीमा लोकपाल (Insurance Ombudsman):यह सबसे प्रभावी कदमों में से एक है. आप अपने क्षेत्र के बीमा लोकपाल के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जो निष्पक्ष रूप से मामले की सुनवाई करते हैं.
  5. उपभोक्ता न्यायालय (Consumer Court):अंतिम विकल्प के रूप में आप उपभोक्ता न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

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